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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१४०

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७ वाँ अध्याय ब्राह्मण काल का सामाजिक-जीवन उपनिषदो से और कहीं कही ब्राह्मणों से भी यह प्रकट होता है कि इस समय ब्राह्मणों और क्षत्रियों में घटना की स्पर्धा चल रही थी। माह्मण लोग ब्राह्मणों के यज्ञविधानों में फंसे थे---तब क्षत्रियो ने उप- निषद् का मूल तत्व ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया था यह ब्रह्मज्ञान ब्राह्मण को नहीं बताया जाता था -श्रावश्यकता पड़ने पर छिपाया जाता था- ऐसे मनोरजक उदाहरण हम नीचे पेश करते हैं- विदेह जनक की भेंट कुछ ऐसे यात्मणों से हुई जो कि अभी पाये थे । ये श्वेतकेतु प्रारुणेय सेरमसुष्म सत्ययज्ञ, और याज्ञवल्क्य थे । उसने पृछान क्या तुम अग्निहोत्र की विधि जानते हो ?" तीनों ब्राह्मणों ने अपनी शक्ति और बुद्धि के अनुसार उत्तर दिए परन्तु किमी के उत्सर ठीक न थे। याज्ञवल्क्य का उत्तर यथार्थ बात के निकट था परन्तु वह पूर्ण न था । जनक ने उनसे यही कहा और रथ में बैठकर चल दिया। ब्राह्मणों ने कहा- इस राजन्य ने हम लोगों का अपमान किया है।" याज्ञवल्क्य रथ पर चढ़कर राजा के पीछे गया और शंका निवारण की। (शतपथ १११४ । २) घबसे जनक ब्राह्मण समझा गया । (शत प्रा० ११ १६ । २१) श्वेतकेतु भारुणेय पांचालों की एक राजसभा में गया 1 प्रवाहन क्षत्रिय ने उससे पाँच प्रश्न किये पर वह एक का भी उत्तर न दे सका। तब राजा ने उसे मूर्ख कहकर भगा दिया-वह पिता के पास वाया - और कहा-पिता ! उस राजन्य ने मुझसे पाँच प्रश्न किये