(सातवाँ अध्याय १३६ का भी उत्तर न दे सका।" उसके पिता गौतम ने कहा-पुत्र ! यह ब्रह्मविद्या हम ब्राह्मणों को प्रकट नहीं है।" दूसरे दिन वह राजा के पास गया और शिष्य की तरह समिधा लेकर सन्मुख बैठा-राजा ने कहा- "हे गौतम ! यह ज्ञान तुम्हारे प्रथम और किसी भी ब्राह्मण ने नहीं प्राप्त किया था इसलिए ब्राह्मणों में सब से प्रथम तुम्हीं को मैं ग्रह ज्ञान प्रदान करता हूँ। यह विद्या केवल क्षत्रियों ही की थी और तब गौतम ने उसे वह ज्ञान दिया। (छान्दोग्य० टप०१।३) इसी उपनिषद् में एक दूसरे स्थान पर इसी प्रवाहन ने दो घमण्डी साक्षणों को निरुत्तर करके उन्हें श्रात्मा का ज्ञान बताया था। शतपय ब्राह्मण (१०। ६ । १.। १) मैं और छान्दोग्य उप. (५१२) में एक ही कथा है-वह इस प्रकार है कि पाँच माह्मणगृहाथों और वेदा- न्तियों में इस बात की जिज्ञासा हुई कि 'यात्मा क्या है ? और ईश्वर क्या है ?' वे उबालक पारुणो के पास गये । श्रारुणी को भी इस विषय में सन्देह था ? इसलिये वह अश्वपति कैकय राजा के पास उन्हें ले गया जिसने उन्हें सादर ठहराया । वे दूसरे दिन हाथ में समिधाएँ लिये हुये राजा के सन्मुख शिष्य की भाँति गये थौर उसने वह ज्ञान प्रदान किया । कौशीतकि उपनिपद ( 11) में लिखा है कि उद्दालक थारुणी और उसका पुत्र श्वेतकेतु दोनों हाथ में समिधाएँ लिये हुए चित्रगांगा- यनी राजा के पास गये और समाधान किया। कौशीतकि उपनिषद् (१ ) में प्रसिद्ध विद्वान् गार्यवालाकि और काशियों के विद्वान राजा अजातशत्रु के वाद विवाद के विषय में एक प्रसिद्ध कथा लिखी है । इस घमण्डी ब्राह्मण ने राजा को ललकारा परन्तु शास्त्रार्थ में हार गया । तब अजातशत्रु ने कहा है वालाकि तुम केवल इतना ही ज्ञान रखते हो ? उसने कहा केवल इतना ही । तय अनावशत्रु -तुमने मुझे व्यर्थ ही यह कहकर ललकारा कि~क्या मैं तुम्हें ने कहा-
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