पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१४८

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[बेद और उनका माहित्य . जातियों में से थे और याज कल की नाई उस समय की हिन्दू समाज मे सब में नीचे थे। इसी ग्रन्थ के ३० वे अध्याय में यह नामावली बहुत बदाकर दी है। हम पहिले दिखला चुके हैं कि यह धध्याय बहुत पीछे के समय का है चौर वास्तव में उपोद्धात है। पर इसमें भी बटुन से ऐसे नाम मिलते है जो केवल व्यवसाय प्रगट करते हैं और बहुत से ऐसे हैं जो निःसंदेह धादिवासियों के हैं और उसमें इसका तो कहीं प्रमाण ही नहीं मिलता कि वैश्य लोग कई जातियों में बटे थे। उसमें नाचनेवाले' वक्ताओं और सभासदों के नाम, रथ बनानेवालों, बदइयों, कुम्हारों, जवाहिरियों, वेति- हरों, तीर बनानेवालो और धनुष बनानेवालों के नाम, बौने, कुबडे अन्धे शार बहिरे लोगों के, वैद्य और ज्योतिषियों के, हाथी घोड़े और पशु रखने वानों के, नौकर द्वारपाल, रसोइयों और लकड़िहारों के, चित्रकार और नामादि खोदने वालों के, धोबी, रंगरेन और नाइयों के, विद्वान मनुष्य, घमण्डी मनुष्य और कई प्रकार की स्त्रियों के, चमार, मछुअाहे, व्याधे और वहेलियों के, मोनार और व्यापारी और कई तरह के रोगियों के, नकली बाल बनानेवाजों, कवि और कई प्रकार के गवैयों के नाम मिलते हैं। यह स्पष्ट है कि ये सब नाम नातियों के नहीं हैं। इसके सिवाय मागव, मूत, भमिल, मृगयु, स्वनिन, दुमेद आदि लो नाम प्राये हैं वे स्पष्टत. यादिवासियों के नाम हैं जो आर्यसमाज की छाया में रहते थे । यहाँ पर हमें केवल इतना ही और कहना है कि करीब करीब यही नामा- वली तैत्तिरीय ब्राह्मण में भी दी है। पर को नामावली से जिस समय का हम धर्णन कर रहे हैं, समय के समाज और उपवसाय का कुछ हाल जाना जाता है; पर हम नामावली से और जाति से कोई सम्बन्ध नहीं है । ऐतिहासिक काव्य- फाल में और इसके पीछे भी मुसलमानों के यहाँ थाने के समय तक बराबर मार्यों में से बहुत ही अधिक लोग वैश्य थे, यद्यपि वे कई प्रकार का , उस -