पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१६०

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[वेद और उनका साहित्य वह इस सभा में खड़ी हुई और बोली कि * हे याज्ञवल्क्य, जिस प्रकार से काशी अथवा विदेहों के किसी योद्धा का पुत्र अपने ढीले धनुप में डोरी लगा कर और अपने हाथ में दो नोकीली शत्रु को बेधनेवाले तीर लेकर युद्ध करने खड़ा होता था, उसी प्रकार से मैं भी दो प्रश्नों को लेकर तुमसे लड़ने के लिए खड़ी हुई हूँ । मेरे इन प्रश्नों का उत्तर दो।" ये प्रश्न किये गये और इनका उत्तर भी दिया गया और गार्गी वाच. पनवी चुप हो गई। हिन्दू स्त्रियाँ अपने पति की बुद्धिविषयक साथिनी, इस जीवन में उनकी प्यारी सहायक और उनके धर्म विषय कामों की अभिन्न भागिनी समझी जाती थी और इसी के अनुसार उनकी प्रतिष्ठा और सम्मान भी था। वे सम्मति और बपौती की भी मालिक होती थी, जिससे प्रगट होता है कि उनका कैसा थादर था। बहुतसी दूसरी प्राचीन जातियों की नाई हिन्दुनों में भी बहुभायंता प्रचलित थी। क्योंकि एक मनुष्य के कई स्त्रियों होती हैं, पर एक के एक साथ ही कई पति नहीं होते।" (ऐतरेय ब्राह्मण ३, २३) ऐतरेय ब्राह्मण (१, ८, ३, ६) में एक अद्भुत वाक्य है जिसमें तीन वा चार पीढ़ी तक यात्मीय सम्बन्धियों में विवाह करने की मनादी है, इसलिये भोगनेवाले (पति) और भोगनेवाली (स्त्री) दोनों एक ही मनुष्य से उत्पन्न होते हैं।" क्योंकि सम्बन्धी यह कहते हुए हँसी खुशी से इकट्ठे रहने हैं कि तीसरी वा चौथी पीढ़ी में हम लोग फिर सम्मिलित होंगे ! -