पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१६१

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८वां अध्याय वेदांग मुण्डक उपनिषद् में विद्या के दो भेद किये हैं, एक परा और दूसरी अपरा, अंशय ब्रह्मज्ञान करानेवाली विद्या को परा विद्या कहते हैं, किन्तु अपरा विद्या में ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, चन्द और ज्योतिष हैं। वठों वेदांगों की यह सब से प्राचीन गणना है, प्रारम्भ में न तो इनके विषय पर विशेष पुस्तकें थीं, और न विशेष शाखाहोथीं. किंतु केवल विषय मात्र ही था, जिसका अध्ययन वेदों के साथ ही साथ हो जाता था, अतएव वेदांगों का प्रारम्भ ब्राह्मणों और धारण्यकों में भली. प्रकार मिल सकता है, समय पाकर इन विषयों के ऊपर अधिक से अधिक उत्तम दङ्ग के अन्य लिखे गये और प्रत्येक वेदांग की पृथक् शाखा यद्यपि वह वेदों की सीमा में ही थी-बन गई, छहों वेदांगों में से कल्प और ज्योतिप के अतिरिक्त चार वेदांग केवल वेदों को ठीक-ठीक उच्चारण करने और उनको समझने के लिए हैं । कल्प धार्मिक यज्ञों और ज्योतिप ठीक समय को समझाने के लिये है। शिक्षा के विषय परं लिखे हुए शिक्षासूत्र लगभग कल्पसूत्रों के समान प्राचीन हैं, दोनों में केवल इतना अन्तर है कि जहाँ कल्पसूत्र बाह्मण ग्रन्थों के उत्तर भाग हैं वहाँ चेदांग शिक्षा का विषय वेदों की संहिताओं के निकट है। इस वेदांग का सब से प्राचीन वर्णन तैतिरीय श्रारण्यक (७.१ ) में अथवा तैत्तिरीय उपनिपद् ( १.२ ) में मिलता है, जहाँ. अक्षरों, जोर देने, शब्द के टुकड़ों की संख्या स्वर और क्रमबद्ध पाठ में शब्दों की मिलावट की शिक्षा के हिसाब से शिक्षा को छः अध्यायों में विभक्त किया