श्राठवाँ अध्याय ] १६२ विद्वान् का बनाया हुया कहा जाता है, इसका मुख्य विपय सूर्य और चन्द्रमा का स्थान जानना और सताइस नक्षत्रों के चक्र में अमावस्या और पूर्णिमा के चन्द्रमा का स्थान जानना है, संभव है कि ज्योतिप पर सब से प्राचीन ग्रन्थ यही हो किन्तु इसके प्राचीन होने की सासी अन्य ग्रन्थों से नहीं मिलती। अनुक्रमणियाँ वेद, ब्राह्मण और वेदांगों का वर्णन हो चुकने पर भी एक ऐसे प्रकार का वैदिक साहित्य बच रहता है, जिसको धनुक्रमणी कहते हैं । इसमें वेदमंत्रों, वैदिक रचयिताओं, छन्दों और देवताओं की सूची इसी क्रम से दी गयी है, जिस क्रम से वह संहिताओं में मिलते हैं। ऋग्वेद से इस प्रकार के सात ग्रन्थों का सम्बन्ध है, जो सब के सब शौनक के कहे जाते हैं। यह शौनक के ऋग्वेद प्रातिशाख्य के समान श्लोक और त्रिष्टुभ् छन्दों के मिश्रण से बने हुए हैं, एक सर्वानुक्रमणी भी है, जो कात्यायन की कहलाती है, यानुक्रमणी ३०० श्लोकों का ग्रन्थ है, इसमें ऋग्वेद के ऋषियों की सूची है, इसका वर्तमान संस्करण इतना नवीन है कि वह बारहवीं शताब्दी में पड्गुरु शिष्य के टीकाकार को भी विदित था, छन्दोनुक्रमणी में ऋग्वेद के छन्दों को गिनाया गया है, यह प्रत्येक मण्डल के छन्दों के मंत्रों की संख्या और सब छन्दों के मंत्रों की संख्या भी बतलाती है। अतुवाकानुक्रमणी केवल ४० श्लोकों का छोटा सा ग्रन्थ है, यह ऋग्वेद के ८५ अनुवाकों के सांकेतिक शब्द देकर प्रत्येक अनुवाक के मंत्रों की संख्या बतलाता है। पादानुक्रमणी नाम की एक और भी मिश्रित छन्दों की छोटी अनु- क्रमणी है। सूक्तानुक्रमणी, जो कि अब अनुपलब्ध है, प्रतीकों की अनु- क्रमणी थी। संभवतः सर्वानुक्रमणी के सामने व्यर्थ हो जाने के कारण ही यह नष्ट हो गयी, देवतानुक्रमणी की यद्यपि कोई प्रति नहीं है किन्तु
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