पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/१६८

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[ वेद और उनका साहित्य - यारक का ग्रन्थ उनमें सब से अच्छा म र सब से अन्तिम है। निरुत का प्रथम अध्याय केवल व्याकरण सम्बन्धी सिद्धान्तों और वेदार्थ की भूमिका है, दूसरे और तीसरे अध्याय में निघण्टु के नैघण्टुक काण्ड पर टीका है, चौथे से छठे अध्याय तक निघण्टु के नैगम काण्ड पर टीका है, तथा सातव में बारहवें तक निघण्टु के देवत काण्ड पर टीका है। निरुक्त बड़ा रोचक ग्रन्थ है, इसकी भाषा पाणिनी से भी मरल है। यास्क का समय ईसा से पूर्व पाँचवी शताब्दी होने से वह सूत्र काल के प्रारम्भ का प्राचार्य है। छन्द ब्राह्मणों मे छन्द के अनेक विखलित उल्लेख होने पर भी शाइ खायन श्रौत सूत्र ७ । २७ म्वेद प्रातिशाख्य अन्त के तीन पटलों और सामवेद के निदान सूत्र में न केवल छन्द का प्रथक वर्णन किया गया है किन्तु उस्थ, स्तोम और गण का भी वर्णन है, पिङ्गल शुन्द सूत्र एक भाग में भी चैदिक छन्दों का वर्णन किया गया है, क्नुि पिङ्गल छन्द सून्न के वेदाङ्ग कहे जाने पर भी यह वेदाग नहीं कहा जाना चाहिये । क्योकि इस मे वेदोत्तर काल का संस्कृत के छन्दों से ही विशेष नियम दिये हुए हैं। इसके अतिरिक्त यागे लिखी हुयी कारयायन की दो अनुक्रमणिकाओं में भी एक एक खण्ड वैदिक छन्दों के लिये दिया गया है। यह खण्ड विषय में ऋग्वेद प्रातिशास्य के मोलहवे पटल से बिलकुल मिलते जुलते हैं, और सम्भव है कि यह प्रातिशाख्य के उस यंश से प्राचीन हों, यपि प्रातिशास्य अनुक्रमणी से प्राचीन समझा जाता है। ज्योतिष वेदाङ्ग ज्योतिष पछ का एक छोटा सा अन्ध है, इसके ऋग्वेद के संस्करण में ३६ चौर यजुर्वेद के ४३ श्लोक है, यह किसी लग नाम के । .