पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/२०५

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नवा अध्याय < 0 "श्रव वसु M यज्ञ ठाना-उसमें बृहस्पति उपाध्याय था। प्रजापति के पुत्र सदस्य थे । एकत्,-द्वित, बित् धनुप, रैम्य, अर्णवसु, परावसु, मेधातिथि, तांड्य, शान्ति, देशशिरा, कपिल, श्राद्य कठ, तैत्तिरी, करव, होत्र, ये सोलह ऋत्विन थे । इस यज्ञ में पशु वध नहीं किया गया । युद्ध अहिंसक और शुद्ध था। इससे फिर उसका अभ्युदय और जति हुई।" (महाभारत शान्ति श्र. ३३६) महाभारत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि यज्ञों में पशु- हिंसा वैदिक काल से बहुत पीछे चली थी। "यह कृतयुग है, इसमें यज्ञ में पशु अहिंस्य है। क्योंकि इसमें चारों कलाओं से पूर्ण धर्म है। इसके बाद त्रेता युग होगा--उसमें त्रयो विद्या होगी और यज्ञ पशु प्रोक्षित होकर मारे जावेंगे।" (महाभारत शान्ति० ० ३४०) श्रीमद् भागवत् में एक स्थल ४ । २५ । ७१८) पर एक यज्ञ के विषय में लिखा है-“हे राजन् ! तेरे यज्ञ में तो सहस्रों पशु तेरी निर्द- यता से मारे गये वे तेरी उस क्रूरता का स्मरण करते हुए क्रोधित होकर तीषण हथियारों से तुझे काटने को बैठे हैं।" "इस दयाहीन ने जो यज्ञ में पशु मारे थे वे ही क्रुद्ध होकर, उसका यह अयोग्य कर्म स्मरण करते हुए, उसको कुल्हाड़ी से छिन्न-भिन्न करने लगे।" निःसन्देह इन पाप रूप यज्ञों का नाश करने में महापुरुप बुद्ध भग- वान् ने अत्यन्त पुरुपार्थ किया था । फिर भी बलिदानों की प्रथा हिंदू समान से अभी निर्मूल नहीं हुई है। इस समय भी कुछ अन्धधर्मी हत्यारे लोग इन हत्यापूर्ण अत्यन्त घृणित कर्मों को यज्ञों और धर्मकृत्यों के नाम से पुकारते हैं। हाल ही में पूने के प्रसिद्ध मराठी