प्रथम अध्याय 22 तो पाश्चात्य विद्वानों ने भी मैक्समूलर के मत का सम्मान करना त्याग दिया है। e - शेतिष के मत से काल का निरूपण होना एक उचित वात पृथ्वी जितनी देर में सूर्य की परिक्रमा करती है वह एक दिन-तथा चन्द्रमा चितनी देर में पृथ्वी की परिक्रमा करता है वह मास मानर जाता है। परंतु ज्योतिय की गंभीर गणना यह कहती है कि दो अमर- वस्यायों के मध्यवर्ती समय से भी कम समय में चंद्रमा पृथ्वी प्रदक्षिणा कर लेता है । प्रथमोक्त समय ३० दिन से कम और शेपोक्त २७ दिन से कम होता था। इसलिये प्राचीन ज्योतिर्विदों ने नक्षत्र-चक्र को २७ विभागों में विभक्त कर एक भाग का नाम नक्षत्र रखा। ग्राजकल नक्षत्रों की गणना अश्विनी से प्रारम्भ की जाती है। एवं जिस विन्दु में नक्षत्र विपुत् रेखा से मिल कर उत्तराभिमुख होता है वही विदु अश्विनी नक्षत्र का अदि बिंदु माना जाता है। नक्षत्रों के नाम हैं-अश्विनी, भरिणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, भाद्री, पुनर्वसु, पुप्य, अश्लेषा, मघा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, हत्ता, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूला, पूर्वापाद, उत्तराषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद और रेवती। इस तरह नक्षत्र चक्र के प्रत्येक भाग का नाम नक्षत्र है। तारागण सर्वदा ज्योतिर्मय हैं; परंतु कुछ ज्योविक हैं अंधकार में प्रस्त रहते हैं और वे ही ग्रह कहाते हैं। उनके नाम सूर्य, चंद्र, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि है। प्राचीन विद्वानों ने सूर्य और चन्द्र को ही ग्रह माना है। उस समय प्रत्येक ग्रह का नक्षत्र चक्र में एक बार भ्रमण कर जाने का काल निर्दिष्ट था। श्राकाश के सब से अर्व प्रदेश में एक निश्चल तारा भी देख पड़ता है । यह न तो अन्य ग्रहों की तरह नक्षनचक्र ही में घूमता है न नक्षत्रों की तरह पृथ्वी के चारों ओर घूमता है । यही 'ध्रुव है। इसी के नीचे और ग्रह समूहों के ऊपर समर्षि मण्डल नाम के सात उमलल तारे
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