पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/४४

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[ वेद घोर उनका साहित्य २-हे क्षेत्रपति ! जिस तरह गाएँ दूध देती हैं उसी तरह मधुर, शुद्ध, जल की वर्षा हमें प्राक्ष हो । जल देव हमें सुखी करें। ३--बैल श्रानन्द से काम करें, मनुष्य थानन्द से काम करें, हल थानन्द से चलें, जोत को प्रानन्द से बाँधो, पैने को थानन्द से चलायो। ४-हे शुन और सौर ! इस सूक्त को स्वीकार कीजिए। जो मेह थापने द्युलोक मे उत्पन्न किया है उससे पृथ्वी को साँचिए। ५-हे सुभग सीने (हल की फाल) धागे बढ़ो, हम प्रार्थना करते हैं, हम लोगों को धन धौर फसल दो। ६-हल के फाल (सीता) थानन्द से जमीन को खोदें, मनुष्य बैलों के पीछे प्रानन्द से चलें, पर्जन्य पृथ्वी को वर्षा से तरकरे । हे सुन और शीर! हम सुखी करो ( ४ 1 ५७) ७-हलों को बाँधो, जूथों को फैलायो, और जुती भूमि पर बीज बोयो, अनाज सूक्तों के साथ बढे, प्राप्स पास के खेतों में हसुऐ चले जहाँ अनाज पक गया है। ८-पशुओं के लिये कठडे तैयार हो गए हैं। गहरे, अच्छे और कभी न सूखने वाले कुए में चमडे की रस्सी चमक रही है और पानी सहज में निकल रहा है। पानी निकालो १-घोड़ों को ठण्डा करो। खेत में देरी लगे अनाज को उठायो और गाड़ी में भरलायो ! यह कुत्रा जो पशुओं के पीने के लिए पानी से भरा हुया है, एक द्रोण विस्तार में है । उसमें पाथर का एक चक्र है । मनुष्यों के पीने का कुण्ड एक स्कन्द है इसे पानी से भरो। (101103) उपयुक्त प्रमाणों से प्रकट है कि उस काल में कृषि का प्रचार रखूब था। मं० १२ । सु. ६८ । ऋ० १ में हल्ला करके चिड़ियों को उडा देने तथा मं. १० सू. ६६ । ऋ०४ में नालियों द्वारा खेत सोचने का वर्णन मिलता है। गाय चराना, पशु पालना, डाकू लुटेरों यादि का भी वर्णन है ! खरीद विक्री का भी वर्णन है। ,