दूसरा अध्याय ] ४३ कोई मनुष्य पहले बहुत सी वस्तु कम दाम पर बेच डालता है और फिर खरीददार के यहाँ बेचना अस्वीकार कर अधिक दाम मांगता है । पर एक बार जो मूल्य तै हो गया है वह उससे अधिक नहीं ले सकता (४,२४ ।।)। मं० ५। सू० २७ सोने के सिक्के का भी वर्णन है। 'निक' शब्द इसके लिए प्रयोग में आया है। विवाह पूर्ण युवावस्था में होते थे। विवाहोत्सव पर वर की अपेक्षा कन्या के घर अधिक धूम धाम होती थी। वर-कन्या वेदी पर अग्नि प्रदक्षिणा करते थे और पत्थर पर पैर रखवाते थे । विवाह समाप्त होने पर अलं- कृत वधू को लाल पुप्पों से शोभित श्वेत बैलों की गाड़ी में बैठा कर वर अपने घर ले जाता था। बहुतसी स्त्रियाँ वृद्धावस्था तक कुमारी रहती थीं । पुत्र हीन होना दुर्भाग्य समझा जाता था, दत्तक पुत्रों का भी विधान था । कन्याओं की अपेक्षा पुत्र का अधिक सन्मान होता था। 'व्यभिचार, गर्हित पाप था । चोरी करना बड़ा दुष्कर्म था ! प्रायः गाएँ चोरी जाती थीं । चोरों को बाँध कर पीटा जाता था । जुना खेलते थे; पर भद्र पुरुष उससे घृणा करते थे। वस्त्र प्रायः श्रोदने या लपेटने के होते थे। वे ऊन के होते थे, उन पर छीटें छपी होती थीं । जरीदार वस्त्र भी होते थे। स्त्री-पुरुषों में केश रखने का प्रचार था । 'शतदती' और 'कङ्कतिका' नामक औपधियों से केश बढ़ते थे। बालों में सुगन्धित वस्तु लगायी जाती थी। वशिष्ट लोग केशों का दाहिनी ओर जूड़ा बांधते थे। स्त्रिएँ वाल खुले रखती थीं। 'रुद्र' और 'पूपा' केश विन्यास के प्रकार थे। उत्सवों में मालाएं पहनी जाती थीं । पुरुष दाढ़ी रखते थे। दूध खास खाद्य था । दूध में अन्न एकाकर खाते थे । कभी सोम रस दूध में मिला कर पीते थे। घृत बहुत प्रिय था। धान्य भूनकर और पीस कर पूए बनाये जाते थे। फल भी खाये जाते थे।
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