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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/४७

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दूसरा अध्याय के वध की बात है। यद्यपि यह सत्य है कि इन मंत्रों के अर्थ ऐसे भी किये जा सकते हैं जिन से धौर हो अर्थ प्रकट हो। परंतु मांस और पशुवध सम्बन्धी अर्थ इतने निकट और स्पष्ट हैं कि यदि हम वेदों का बहुत ही बड़ा पक्षपात न करें, और पूर्वजों के मांसाहार से सर्वथा चिड़ न जायें तो इन अथों से इन्कार करना सर्वथा कठिन है। ऋग्वेद के पहले मंडल के १६२ वें सूक्त में वेत से घोड़े की देह पर निशान करने और इसो निशान पर से उसके काटे जाने थौर अंग भंग अलग किये जाने का उल्लेख है। दूसरी विचारणीय बात सोम रस की है जो निस्संदेह भंग के समान नशे की चीज थी और जिसे आर्य लोग पीते थे। ऋग्वेद के पूरे एक मण्डल में इस का जिक्र है । ऐसा प्रतीत होता है, इसी सोम के के कारण ईसन के थायों और भारत के प्रायों में बड़ा झगड़ा हुआ। जन्दावस्ता में आर्यों की इस बुरी लत का कई जगह उल्लेख है। पार्यो और ईरानियों के दो पृथक गिरोह बन कर सुर और असुर के नाम से विख्यात होने का मूल कारण यही सोम-पान प्रतीत होता है: यह सोम पत्थर पर कुचल कर और ऊनी छने में छान कर दूध मिला कर पिया जाता था। यह बात ऋग्वेद के 8 वे मण्डल में है। वस्त्र बुनने का जिक्र म० २ सू० ३ ऋ० ६ । म०२ सू० ३८ ऋ०४ आदि में है। म० १० सू० २६ ऋ० ६ में ऊन बुनने और उसके रंग उड़ाने का देवता पूषण कहा गया है। म० १ सू० १६४ ऋ० ४५ में आग लगाकर जंगल साफ करने का वर्णन है। बढ़ई के काम का वर्णन म० ३ सू० ५३ ऋ० १९१ म०४ सू० २ ऋ० १४ । स०४ सू० १६ ऋ० २० में है। म• ३ सू०१ ऋ०५ में लुहार के काम का और म० ६ सू० ३ ० ४ में सुनारों के सोना गलाने का वर्णन मिलता है । म० १ सू० १४० मु. १० म० २ सू० ३९