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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/५३

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दूसरा अध्याय . म० १० सू० ४९ में इन्द्र कहता है कि- 'मैंने दस्यु जाति को "आर्य” के नाम से रहित रखा है (ऋ० ३) दस्यु जाति की नवीन वस्तियों का और वृहद्रथ का नाश किया है (ऋ०६) और दासों को काट कर दो टुकड़े कर डालता हूँ, उन लोगों ने इसी गति को प्राप्त होने के लिए जन्म लिया है। (ऋ० ७) सुदास एक आर्य राजा था तथा विजयी था । उसके विषय में प्रायः यह वर्णन पाया है कि अनेक आर्य जातियाँ और सजा लोग मिलकर उससे लड़े, पर उसने उन सभों को पराजित किया। आर्य जातियों के बीच इन विनाशी युद्धों के, तथा जो जातियाँ सुदास से लड़ी थीं उनके वर्णन ऋग्वेद में इतिहास की दृष्टि से बड़े मूल्यवान हैं। (८) "धूर्त शत्रुओं ने नाश करने का उपाय सोचा और अदीन नदी का बाँध तोड़ डाला। परन्तु सुदास अपनी शक्ति से पृथ्वी पर स्थित रहा और चयमान का पुत्र मरा ।" (९) "क्योंकि नदी का पानी अपने पुराने मार्ग से ही बहता रहा, उसने महा मार्ग नहीं किया और सुदास का घोड़ा समस्त देश में घूम श्राया । इन्द्र ने लड़ाके और वतक्कड़ वैरियों और उनके बच्चों को सुदास के श्राधीन कर दिया।" सुदास के युद्ध-(११) सुदास ने दोनों प्रदेशों के २१ मनुष्यों को मार कर यश प्राप्त किया। जिस तरह यज्ञ के घरमें युवा पुरोहित कुश काटता है उसी तरह सुदास ने अपने शत्रुओं को काट डाला। वीर इन्द्र ने उसकी सहायता के लिए मल्स को भेजा। (१४) "अनु और द्रुह्य के छासठ हजार छःसौ हासठ योद्धा जिनने पशुओं को लेना चाहा था और सुदास के शत्रु थे सब मार डाले गये । ये सब कार्य इन्द्र का प्रताप प्रकट करते हैं।" (११) "इन्द्र ने ही बेचारे सुदास को इन सब कामों के करने