पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/५४

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दूसरा अध्याय (५) हे इन्द्र और वरुण ! शत्रुनों के हथियार हम पर चारों ओर से आक्रमण करते हैं, शत्रु लोग लूटो में हम पर आक्रमण करते हैं । तुम दोनों प्रकार की सम्पत्ति के स्वामी हो । युद्ध के दिन हमारी रक्षा करो। (६) 'युद्ध के समय दोनों दल सम्पत्ति के लिये इन्द्र और वरुण को प्रार्थना करते थे । पर इस युद्ध में तुमने तृत्सुओं के सहित सुदास की रक्षा की जिन पर दस राजाओं ने अाक्रमण किया था।' (७) "हे इन्द्र और वरुण ! वे दस राजे जो कि यज्ञ नहीं करते थे मिलकर भी सुदास को हटाने में समर्थ नहीं हुए।" (८) हे इन्द्र और वरुण ! जिस समय सुदास दस सरदारों से घिरा हुआ था और जिस समय सफेद वस्त्र धारण किये हुए, जटा जूट धारी तृसु लोगों ने नैवेद्य और सूक्तों से तुम्हारी पूजा की थी तो तुम ने सुदास को शक्ति दी थी ( ७, ८३) "जब युद्ध का समय निकट श्रा पहुँचता है और योद्धा अपना कवच पहिन कर चलता है तो वह बादल के समान देख पड़ता है। योन्दा तेरा शरीर न छिदे, तू जय लाभ कर, तेरे शस्त्र तेरी रक्षा करें।" (२) "हम लोग धनुष से पशु जीत लेंगे, धनुष से जय प्राप्त करेंगे, हम लोग धनुष से भयानक थोर घमंडी शत्रुओं की अभिलापा को नष्ट करेंगे । हम लोग धनुप से अपनी जीत चारों ओर फैलावंगे।" (३) "जव धनुष की प्रत्यंचा खींची जाती है तो वह युद्ध में थागे बढ़ते हुए तीर चलाने वाले के कान तक पहुँचती है। उसके कान में धीरज के शब्द कहती है और वह तीर को इस तरह गले लगाती है जैसे कोई प्यार करने वाली स्त्री अपने पति को गले लगाती है।" (५) "तरफस बहुत से तीरों के पिता के समान है। बहुत से हम लोग