[वेद और उनका साहित्य तीर उसके बच्चों की नाई है । वह अावाज करता हुआ योद्धा की पीठ पर लटकता है । लडाई मै उसे तीर देता है और शत्रु को जीतता है।" (६) "चतुर मारथी अपने रथ पर खड़ा होकर जिधर चाहता है उधर अपने घोडों को हाँकता है। रास घोडों को पीछे से रोके रहती है, उनका यश गायो (७) 'घोड़े जोर से हिन-हिनाते हुए अपने खुरों से धूल उडाते है और रथों को लेकर क्षेत्र पर जाते हैं । वे हटते नहीं वरन् लुटेरे शत्रुथों को अपने पैरों के नीचे कुचल डालने है।' (१)'तीर में पर लगे हैं। उसकी नोक हरिन के सीग की है। अच्छी तरह से खीची जाकर तथा तात से छोड़ी जाकर वह शत्रु पर गिरती है। जहाँ पर मनुष्य इकठे वा जुदे जुदे खड़े रहते हैं वहाँ पर तीर लाभ उठाती है।' (१४) 'चमड़े का बन्धन कताई को धनुर की ताँत्र को रगड से बचाता है और कलाई के चारों ओर सॉप की नाँई लिपटा रहता है। वह अपना काम जानता है, गुणकारी है और हर तरह पर योद्धा की रता करता है।' (१६)हम उस बाण की प्रशंसा करते है जो कि जहर से बुझा हुया है, जिस की नौक लोहे की है और जो पर्जन्य को है।' ऋग्वेद ही से यह बात भी प्रमाणित होती है कि श्रार्यों ने लगातार युद्ध करके सिन्धु से सरस्वती तक का प्रदेश और पर्वतों से समुद्र ठक का देश जीत लिया था । ऋग्वेद मे सिन्धु और उसकी पाँचो सहायक नदियों का उल्लेख १० वे मंडल के ७५ चे सूक्त में है। इस सूक्त में लीन बड़े- बड़े प्रवाहों का वर्णन है । एक वह जो उत्तर पश्चिम से बह कर सिन्धु में मिलता है। दूसरा वह जो उत्तर पूर्व मे उस में मिलकर दूरस्थ गंगा यमुना में मिल जाता है । इस प्रकार एक भौगोलिक सीमा बन जाती है
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