पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/७५

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[वेद और उनका साहित्य गणित-८।७।१८।३, ईश्वर स्तुति--11३। १८ । २, उपासना |---४ ।। २४ । १, १।१।११।१ मुक्ति --८।२।।१, नौ विमान यादि विज्ञान-1।5।। ३,४,115 15 ३1८। । १,३।३।४।१,१।३ । १।७, ५। ३ । ३४८, २।३ । २३ । ४७, २।३। " 1 तार विद्या-१ । ८।२१ । १०, पुनर्जन्म-८।१ । २३ । ६-७, नियोग --01।१८।२, १०।१८,८।८।। २.१ २०, राजधर्म-३।२।२४ । ६,१ । ३ । १८।२, प्रायः सभी अर्वाचीन प्राचीन भाष्यकारों का ऋषि दयानन्द ने खण्डन किया है, खास कर मायण और महीधर फा; परन्तु अाश्चर्य है कि शतपथ श्रादि माह्मयों के विश्य में उनने बिलकुल मौन साधन किया है।