[ वेद श्रर उनका साहित्य तो यह स्पष्ट है कि गोपथ के समय तक भी अथर्ववेद नही म्वीकार किया गया था। एक स्थान पर वह स्पष्ट कहता है कि अथर्व कैसे वेद बन गया। अथर्व और अंगिरा का वर्णन और नाम पुराणों में हमें दीख पड़ता है । यह सम्भव है इन्हीं दो विद्वानों ने इस ग्रन्थ का संकलन किया हो । इस वद में २० काण्ड है, जिनमें लगभग ६ हजार ऋचाएँ है । इसका छठा भाग गद्य में और शेप का ६ अंश ऋग्वद के प्रायः दसवें मण्डल के मूनों से मिलता है। उन्नीसवाँ काण्ड एक प्रकार से पहिले १८ काण्ड का परिशिष्ट है और बीसवै काण्ड में ऋग्वद के उद्धरण है। यह अन्य चाहे जितना आधुनिक हो, पर इसमें हम एक प्रबल वैज्ञानिक राद को देखते है। अनेक रोगों के वर्णन और उनको नष्ट करने वाली अनेक यौषध के गुण, नाम, रूप, रेखा, कीटाणु शास्त्र के गहन विषय जो यूरोप को अब प्रतीत हुए हैं, तथा दीर्घायु होने, धन प्राप्त करने और नीरोग रहने को बहुत सी महत्व पूर्ण बातें इसमें पायी जाती हैं।
पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/७९
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