पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/७८

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तीसरा अध्याय] इनका अवलम्ब लिया है । इनको मूल यजुवेंद को शुद्ध स्वरूप माना गया है । इसी शाखा का ब्राह्मण भी उपलब्ध होता है। पडशीतिः शाखा यजुर्वेदस्य-चरणव्यूह ? सामवेद के सम्बन्ध में कोई महत्वपूर्ण बात का पता नहीं लगता । कुछ ऋचाओं को छोड़ कर प्रायः उसकी सभी ऋचाएँ ऋग्वेद में भी पायी जाती हैं । यह बहुत कुछ सम्भव है कि शेप ऋचाएँ भी ऋग्वेद की हों, और अब उन्हें भूल गये हों, अन्ततः यह तो कहा ही जा सकता है कि सामवेद, ऋग्वेद से गायन कार्य के लिये स्वर ताल वद्ध करके संग्रह किया गया है । इसके सिवा हमें और कोई कारण प्रतीत नहीं होता। इस वेद के कुछ मन्त्र यजुर्वेद तथा अथर्ववेद में भी देखने को मिलते हैं। अथर्ववेद का उल्लेख हमें बिलकुल अाधुनिक काल में मिलता है। मनुस्मृति तथा अन्य स्मृतियां भी प्रायः तीन वेदों का ही उल्लेख करती हैं। कौपीतिक ६ । १०। ऐतरेय ब्राम्हण ५। ३२, शतपथ ब्राम्हण ११ । । । ८, ६४ । ६ । १० । ६ छान्दोग्य उपनिषद् ४ । १७,। ऐत- रेय पारण्यक ३ । २ । ३, बृहदारण्यक १ । ५, में तीनोवेदों का नाम उल्लेख करके इस ग्रन्थ की अथर्वाङ्गिर नामक इतिहास में गिनती की है। इस ग्रन्थ को वेद माने जाने का उल्लेख अथर्ववेद ही के ब्राम्हण और उपनिपदों में मिलता है। हम उपयुक्त प्रमाणों के आधार पर कह सकते हैं कि मसीह से लगभग १५०० वर्ष पूर्व यह ग्रन्थ अथर्वाङ्गिर इतिहास के तौर पर प्रकट हो रहा था। और कभी-कभी इसे अथर्वन् वेद कहकर स्वीकार करने को पेश किया जाता था परन्तु ईस्वी शताब्दि के पीछे तक भी वह वेद नहीं हो पाया था। गोपथ ब्राम्हण तो चौथे वेद को श्रावश्यकता को तर्क द्वारा सिद्ध करने की चेष्टा करता है। वह कहता है गाड़ी के चार पहिये होते हैं, पशु भी बिना चार टाँगों के नहीं चल सकता, इसलिये यह भी बिना चार वेदों के नहीं हो सकते । इससे -