८२ [वंद और उनका माहाय वाणिज्य---हे देवो! मूलधन से धन की इमा करने वाला मैं जिस धन से व्यापार चलाता हूँ, वह मेरा धन बहुत होवे, कम न हो। श्र०३।११ निप धन से मै व्यापार करता हूँ उसके द्वारा उससे अधिक की में कामना करता हूँ। ५०३।१५ कबूतर से दूत का काम-इशारे से उड़ाया हुथा कबुतर बड़े मार्ग से यहाँ थाया है। हम उसका सत्कार करें और उसे लौटाने की तयारी करें। दुध घी-गौत्रों का दूध मैं कादत्ता हूँ। घी से बल बढ़ाने वाले रसको मंचित करता हूँ। दूध घी से हमारे वीर तृप्त हों, इसनी गाये हमारे पास रहें। २६६ गृहस्थ-हमारे घर में दूध, घी, धान्य, पन्नी, धीर और अ० २.१६५ ऋण निन्दा-इस लोक थोर परलोक में कही हम भणी न हों। अ० १७१३ नौकावर्णन-उत्तम रक्षा के साधनों से युक्त, विस्तृत, न टूटी हुई, सुख देनेवाली, अखगिडत, उत्समरा से चलती हुई, दिग्य, मुन्दर मस्लियों पाली, न चु ने वाली नाव पर हम चढ़े। ०७।६ (७) ३ हमारे घरों में कभी न गलती करनेवाला कबुतर मंगल मूर्ति होकर रह और समाचार को जाने का काम करे । ऋ० १०.१६५२ उत्तम विचार के साथ कबूतर को भेजिए और प्रसन्नता के साथ श्रावश्यक सन्देशा भेजिए। यह कबूतर लौटकर हमारे सन्देहों को दर ००।१६५ । भरेगा।
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