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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/८२

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53 चौथा अध्याय ] नर जुयारी दृसरों की युवती पत्रियों को, महल घटारियों को और ऐश्वर्य को देखता है, तब उसे बड़ा सन्तोप होता है। जो जुयारी मातः काल सब्जे घोड़ों की जोड़ी पर सवार था वही पापी अग्नि तापकर रात काटता है। ०१०।३४।११ पुरुषार्थ कर्म-इस लोक में कर्म करते हुए सौ वर्ष जीवे । यही तेरे लिए एक मार्ग है । कर्तव्य पर डटे रहने से मनुष्य दोष में लिप्त नहीं होता। य०४०।२ ईश्वर की प्रतिमा नहीं है जिसका महान नाम प्रसिद्ध है उसकी कोई प्रतिमा नहीं है य० ३२॥३॥ उससे प्रथम कुछ न था। उसने सब भुवनों को बनाया । वह प्रजापति, प्रना के संग रहने वाला, और सोलह कला युक्त तीनों तेजों को धारण करता है। य. ३२.१५ ३३देवता~जिसके अंगों में ३३ देव सेवा करते हैं उसे केवल ब्रह्म ज्ञानी ही जान सकता है। भ०१०। ७ । २७ राए में वर्षों की उन्नान- हे ब्राह्मण, हमारे राज्य में बायण, ज्ञान युक्त और क्षत्रिय शूर हों। दुधार गाएँ बैल व चपल घोड़े और विद्वान् स्त्रियाँ हों, यज्ञ कर्त्ता का पुत्र शूर विजयी और समो में चमकने वाला हो, योग्य समय पर मेह बरसे । वनस्पतियाँ फलों से भरपूर हों। या २२ । २२ कान छेदना-लोहे की सुई से जैसे अश्विनी कुमारों ने दोनों कानों को देदा था, जो कि बहु प्रजा सुचक था, वैसा ही तुम भी वेधन करो। ०६।१४२