चौथा अध्याय] ३. राङ्गा के योग्य गुण-प्रती, सत्यधारी, तेजस्वी, और सुकमी ही राजा होना चाहिए। ऋ० ८।२५।८ मूर्ख-कोई कोई पुरुष सभाओं में अन्य भाग और सब कामों में प्रतिष्ठा पाते हैं; परन्तु वे दुग्ध रहित गायके समान केवल छल कपट युक्त होते हैं और अपनी मिथ्या विद्वत्ता दिखाकर मूह प्रजा को ठगते हैं। १०।१८। ५ पुरुष से स्त्री श्रेष्ठ-यह प्रसिद्ध है कि बहुत सी पतिव्रता स्त्रियाँ पुरुष से बधिक धर्म में हद और प्रसंसनीय होती है। ऋ० १।६१।६ स्त्रीको रज्ञ का अधिकार-हे विद्वान स्त्री पुरुषों ! जो स्त्री पुरुष एक मन होकर यन करते हैं । वे ईश्वर के निकट पहुँचते हैं । धौर ईश्वर के श्राश्रम में रहते वे सुखी होते हैं । ऋ० ८ १३१ । ५ माँलाहारी को दण्ड-जो दुष्ट मनुष्य या घोड़े या अन्य पशु के माँस को खाकर अपना पोपण करता है जो अहिंसनीय गाय के दूध को हरता हैं-उसका सिर काट लिया जाय । ऋ. जीवात्मा-परमात्मा-अभिन्न, भिन्न की तरह या दो पक्षियों की तरह जो एक ही वृक्ष पर साथ साथ रहते हैं उनमें एक फल खाता है। दूसरा नहीं खाता । ऋ० १।१६४ । २० सृष्टिरचना-उस समय यह स्थूल नगत् न था। न तन्मात्रा तक ही थी। नं परमाणु युक्त आकाश था । उस समय कहाँ, क्या, किस से ढका हुआ था ? और किसके प्राधय में था। म. १०। १२८।१
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