पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौथा अध्याय] विधवा का पुनर्विवाह-हे पुरुष ! यह वैवाहिक अवस्था को स्वीकार करनेकी इच्छा रखनेवाली स्त्री सनातन धर्म का पालन करती हुई तेरे पास आती है। इसे सन्तान और धन दे। हे स्त्री! तू इस मृतःप्राय पति के पास पड़ी है, यहाँ से उठकर नीवित मनुष्यों के पास था । तेरे पाणिग्रहण करनेवाले पति के साथ इतना ही पलीत्व संबंध था। घ. १८।३।२ मृत पति से सम्बन्ध छुड़ा कर लीवित तरुणी स्त्री का विवाह किया गया है, ऐसा देखा है। नो गाढ़ अन्धेरे शोक से आच्छादित थी उस अलग पड़ी स्त्री को मैंने ग्रहण किया है। श्र० १८।३।४ पत्नी कर्म-ये तमाम सुशोभित स्त्रियाँ आ गई हैं, हे स्त्री तु उठ कर खड़ी हो, बल प्राप्त कर, उत्तम पत्नी बन कर रह । उत्तम सन्तानवाली होकर रह । यह गृह यज्ञ तेरे पास श्रागया है। इसलिए घड़ा ले और घर का काम कर। शुद्ध, गौर वर्ण, पवित्र, निर्मल और पूज्य बन कर अपने गृह कृत्य में दत्तचित्त हो। गोली मारना--सीसे के लिये बरुण का आदेश है। अग्नि भी उसमें है। इन्द्र ने वह सीसा मुझे दिया है। वह डाकुयों का नाश करने वाला है। प्र०१।१६।२ यह सीसा डाकुश्नों को हटाता है और शत्रुओं को हटाता है। पिशाचादि क्रूर जातियों को मैं इसी से जीतता हूँ। श्र० ११ १६।३