[ वेद और उनका साहित्य वह भी प्रजा शक्ति-उत्क्रान्त हो गयी चौर तब समिति (चुनाव सभा) बनाई । उसके सदस्य सामिन्य, कहलाये। वह भी प्रजा शक्ति जमान्न हो गयी । और थामन्त्रण ( मन्त्रि मण्डल) में परिणत हुई । इस के सभ्य मन्त्री कहाये। थ-८।१०।१।२।१।। १०।११।१२। १३ फिर राजा बनाया गया, वह सबको रंजन (प्रसन्न ) रखता था इस लिये राजा नाम पड़ा य०१५।।३ वह नजाओं के अनुकूल पाचारण करता रहा । उसके पास सभा, समिति, सेना और खजाना भी होगया । जात कर्म- -सन्तान उत्पन्न करने वाली स्त्री अपने अंगों को भली भाँति कोमल बनाये, और हम उसके लिये प्रमूति गृह का बन्दो बस्त करें । हे जम्चा (सुपणे ! ) प्रसन्न हो । थ० १-११।३। हे स्त्री! मै नेरे गर्भ-मार्ग और योनिको तथा योनि के पास वाली नाडियो को फैलानी हूँ, इससे गर्भ सरलता से बाहर थावेगा। फिर में जरायु से कोमल बालक और माता को अलग करूंगा। ५०१०-११.६ अन्नप्राशन-हे यालक ! तेरे लिये जौ और चावल कल्याण कारी और बलभागी हों तथा मधुर स्वादवाले हों। ये तय को नहीं होने देते। हे पुष्ट आंघों वाली बुध्दिमनी । गर्भ को ठीक ठीक धारण कर ! पुष्टि दाना का रज वीर्य तेरे गर्भ को यथावत् पुष्ट करो। य०८।२ । १८
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