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पृष्ठ:वेद और उनका साहित्य.djvu/९८

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चौथा अध्याय ] . प्राण और अपान तेरे गर्भ को पुष्ट करें, सत्पुरुष और विद्वान् तेरे गर्भ को पुष्ट करें । इन्द्र और अग्नि तेरे गर्भ को पुष्ट करें । अ०६।१७ । ४ राजा वरुण जिल दिव्य औषधि को जानता है उस गर्भ-कारण- औषधि को तू पी। ५।२५।६ पुलवन-हे स्त्री! जिसकारण त बाँझ होगई है उस कारण को हम तुझ में से नष्ट करते हैं। है दो ! मैं तेरा पुसवन कर्म करता हूँ जिससे तेरा गर्भ योनि में. पाजावे। प्र०३१ ३२१ ५ पुंसवान किया गया । शमी (छोकर) और अश्वत्थ (पीपज). दिया गया। अब इसे पुनः प्राप्त होगा प्र०६।११।१ सौभाग्य के लिये तेरा हाथ पकड़ता हूँ। मुझ पति के साथ बुढ़ापे तक रह । प्रतिष्टित और नत्र पुरुषों ने तुझे मुझे दिया है, केवल कुल्यों के लिये। अ० १४-१-५. हम सीधे उस मार्ग पर चलेंगे जिसमें वीरत्व को दाग न लगे और धन प्राप्ति भी हो। अ० १४-२-८ हे प्रिय दृष्टि वाली ! पति की रतिका, सुखदायिनी, कार्य निपुणा, सेवा करने वाली, नियमों का पालन करने वाली, वीर पुत्र उत्पन्न करने वाली, देवरों से स्नेह रखने वाली तू हो।