रोजाबिला―(आँखें नीची करके) "नहीं कदापि नहीं परन्तु मैं उसका अनिष्ट भी नहीं चाहती क्योंकि कामिला तुम भलीभांति जानती हो कि कोई कारण नहीं है कि मैं इस दीन फ्लोडोआर्डो के अनिष्ट का ध्यान करू"।
कामिलो―"अच्छा मैं इस चर्चाको फिर किसी समय करूँगी। इस समय मुझे एक कार्य्य करना है और नौका मेरे लिये लगी हुई है। अब मैं जाती हूँ परन्तु पुत्री जितना शीघ्र तुमने प्रण किया है उतना ही शीघ्र कहीं उसे त्याग न देना।"
यह कह कर कामिला चली गई और रोजाबिला इसी तर्क वितर्क में उदास बैठी रही। वह अपने हृदय में कुछ बातों का विचार करती और फिर उन्हें तत्काल दूर कर देती। किसी बस्तु की कांक्षा करती और फिर अपने लिये धिक्कार शब्द का प्रयोग करने लगती, क्योंकि वह चारों ओर दृष्टिपात करके इस रीति से देखती थी जैसे किसी वस्तुके अनुसन्धान में हो परन्तु मुख से यह नहीं कह सकती कि वह क्या वस्तु है।
कामिला के चले जाने पर रोजाविला इसी उधेड़ बुन में थी कि एकवार आतप की प्रखरताने उसको उत्तप्त किया और अशक्त होकर उसे किसी छायावान स्थान में शरण ग्रहण की आवश्यकता हुई। उपबन में एक ठौर एक छोटा सा सरोवर था जिस पर लोहे की तिकठियों के सहारे सुमनों की वेलें चढ़ाई गई थीं, इस कारण वहाँ प्रचण्ड मार्तण्ड की प्रखर किरणें प्रवेश नहीं कर सकती थीं, रोजबिला उसी ओर चल निकली परन्तु समीप पहुँच कर उसकी गति रुक गई और वह कुछ ठिठकी और लज्जितसी हुई। इसका कारण यह था कि उस सरोवर के कुलपर फ्लोडोआर्डो बैठा हुआ एक पत्र अत्यन्त सावधानता से देख रहा था। उसे देखकर रोजाबिला अपने हृदय में सोचने लगी कि अब मैं यहाँ ठहरूँ अथवा पलट जाऊँ, परन्तु इससे