मुद्रायें मांगता था। उसका कथन था कि तुम मुझे इतनी मुद्रायें प्रदान करो तो मैं तुमसे पक्का वादा करता हूँ कि आज की रात के बाद फिर कुनारी तुमको कभी दुःख न दे सकेगा। चाहे उसे कोई स्वर्ग में लेजाय अथवा नरक में छिपाये मैं उसे अवश्य मारूँगा। अब वह क्या कर सकते थे अबिलाइनो ऐसा पुरुष न था, जो मुँह माँगे पारितोषिक में न्यूनता करता और पादरी महाशय को यह उद्विग्नता थी कि किसी प्रकार फिर उसी पद पर नियुक्त हूँ-परन्तु यह बात कुनारी के बिनाश पर निर्भर थी इस लिये विवश होकर उनको अविलाइनो को मुँह मागा पुरस्कार देना पड़ा, और दूसरे दिन कुनारी नृपति महाशय का प्राणोपम मित्र और वेनिस का महत्व संसार से उठ गया। जिस समय उन दुष्टों को यह समाचार ज्ञात हुआ उन्होने पादरी महाशय के आवास में परमानन्द से मदपान किया, और परस्पर आनन्द और हर्ष के साथ बधाइयाँ दी गईं परन्तु नृपति महाशय को भय और आश्चर्य से बुरी गति थी। उन्होंने नगर और अपने राज्य भर में ठौर २ यह सूचना दे दी और घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति कुनारी के नाशक का पता लगायेगा उसे दश सहस्र स्वर्णमुद्रा पुरस्कार मिलेगा। इस घोषणा के कुछ दिनों बाद ही वेनिस के मुख्य मुख्य स्थानों पर एक पत्र लगा हुआ दृष्टिगोचर हुआ जिसका यह आशय था।
"ऐ वेनिस निवासियो! तुमलोग कुनारी के नाशक का नाम जानना चाहते हो, इसलिये तुमको व्यर्थ के असमञ्जस से बचाने के लिये मैं शपथ करके कहता हूँ कि मैं अविलाइना उसका नाशक हूँ। दो बार मैंने अपना कटार उसके हृदय में भोंक दिया और फिर मत्स्यनिकरों के खादन के लिये उसका शव तरङ्गिणी में फेंक दिया। महाराजने घोषणा की है कि जो व्यक्ति कुनारी के नाशक का अनुसन्धान लगायेगा उसे बीस सहस्र