ता था कि ऐसा न हो कहीं अविलाइनो मेरे समीप भी वैसे ही आकर उपस्थित हो जैसे कि रोजाबिला के समीप आया था। अब रहीं बृद्ध स्त्रियाँ वे इन बातों पर सहमत थीं कि अबिलाइनोंने अपने को दुर्दैवके हाथ बेंच डाला है और उसकी सहायता से वेनिस निवासियों के साथ ऐसी दुष्टता करता है। पादरी गान्जेगा और उनके सहबासियों को अपने नूतन सहकारी पर अभिमान (फख़र) था। और उनको पूर्ण आशा हो गई थी कि अब हमारे सम्पूर्ण कार्य्य सिद्ध हो जायँगे। बेचारे कुनारी के स्त्री-पुत्रादि अबिलाइनो के लिये परमेश्वर से उसकी अनिष्ट के प्रार्थी थे और यह चाहते थे कि उनकी अश्रु प्रवाहजनित सरिता उस दुष्टात्मा को बहाले जाय जो उनके बंशकी अवनति का कारण हुआ। परन्तु कुनारी की मृत्यु का शोक जितना नृपति महाशय और उनके दोनों मन्त्रदाताओं को था, अन्य को न था, उन लोगों ने निश्चय कर लिया था कि जब तक हम लोग उस दुष्ट के रहने का स्थान न खोज लेंगे, और उसको दण्ड न दे लेंगे उस समय तक हमारे लिये सुख और आराम अबिहित होगा।
एक दिन नृपति अंड्रियास अपने मुख्य आयतन में अकले बैठे हुए थे कि अकस्मात् उनको अबिलाइनो का कुछ स्मरण हो आया और वह स्वगत कहने लगे "अच्छा जो कुछ हुआ सो हुआ पर इसमें संदेह नहीं है कि यह अविलाइनो अद्भुत व्यक्ति है क्योंकि जो पुरुष ऐसे कार्य कर सकता है जैसे इस समय पर्य्यन्त अबिलाइनो ने किये हैं उसमें (पूर्ण विश्वास है कि) योग्यता और पराक्रम इतना होगा कि यदि उसके अधिकार में कुछ सेना हो तो वह आधे संसार को बिजय करले। परमेश्वर करता कि मैं भी उसको एक बार अवलोकन कर लेता"।