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वेनिस का बाँका
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"अच्छा ऊपर देखिये" यह वाक्य अविलाहनो ने लल- कार कर कहा और उसी के साथ महाराज के कन्धे पर धीरे से ठोंक दिया। अंड्रियास चौंक उठा। क्या देखता है कि उसके सम्मुख एक पर्वत से डील डोल का मनुष्य असित परिच्छद धारण किये खड़ा है और उसका ऐसा भयानक स्व- रूप है कि विश्वमें वसा किसीका न होगा। नृपति महाशयने घबरा कर पूछा "तू कौन है"।

अबिलाइनों―"तू मुझे देखता है और फिर भी पहचान नहीं सकता? मैं अविलाइनो तुम्हारे स्वर्गीय कुनारी का मित्र और इस राज्य का आश्रित सेवक हूँ"।

अबिलाइनो की इस धृष्टता से उस समय बोर अंड्रियास का धैर्य्य कतिपय क्षणके लिये हाथ से जाता रहा। जिसे कभी स्थल अथवा जल संग्राम से भय उत्पन्न नहीं हुआ था और जिसका साहस किसी भयोत्पादक घटना के कारण से न छूटा था उस पर अचाञ्चक ऐसा आतंक छा गया कि वह कुछ काल पर्यन्त अबिलाइनो को जो अत्यंत निर्भयता और निश्शं- कता के साथ अंड्रियास के सामने खड़ा था चित्रसदृश परि- चालना हीन होकर देखता रहा। यह दशा देखकर अबिलाइनो ने अंड्रियास से निर्भयों की भाँति संकेत किया और अत्यन्त विलक्षणता से कीशों के समान दन्तदर्शन पूर्वक हास्य किया। जब नृपति महाशय को चैतन्य प्राप्त हुआ तो उनकी जिह्वा से यही निकला कि "अबिलाइनो तू इस योग्य है कि मनुष्य तुझ से त्रस्त हो और घृणा करे"।

अबिलाइनो―"मैं इस योग्य हूँ कि मनुष्य मुझसे भयभीत हो! तूभी ऐसा विचार करता है? अच्छा, मैं इसको श्रवण कर अत्यन्त प्रफुल्लित हुआ। मैं इस योग्य हूँ कि मुझसे मनुष्य घृणा करे, कदाचित मैं ऐसा हूँ अथवा नहीं हूँ। मैं स्वीकार