षोड़श परिच्छेद।
इस समय जब कि वेनिस में प्रति दिन एक नवीन घटना घटित होती थी रोजाविला की माँदगी में कुछ भी न्यूनता न थी बरन वह दिन दूनी रात चौगुनी होती थी। उसके रोग की वास्तवता से कोई अभिज्ञ न था परन्तु प्रगट में सब लोग देखते थे कि उसकी दशा हीन होती जाती है, और वह नवयौवन, वह सुन्दर स्वरूप, और वह माधुर्य्य सब बिनष्ट हुआ जाता है! प्रेम महाशय की सहायता से अब उसकी यहाँ तक दशा पहुँची थी कि जीवन भारी था। फ्लोडोआर्डो का सजीला डील, हास्य-विशिष्ट मुख और तिरछी चितवन उसकी दृष्टि में वेढंग समा गई थी और वह प्रत्येक समय उसकी दृष्टियों में फिरा करता था। परन्तु यदि रोजाविला की यह दशा थी तो फ्लोडोआर्डो की दशा इससे कब उत्तम हो सकती थी। उसने सकल सहवासों से विरक्ति ग्रहण की थी, केवल निजायतन से सम्बन्ध रखता था और अपने विचारोंके सटीक अथवा यथावत् रखने के लिये दूर दूर का अटन करता था, परन्तु जहाँ जाता था दुष्ट प्रेम छाया की भाँति पीछा न छोड़ता था। इस वार उसे गये हुये तीन सप्ताह हो चुके थे परन्तु किसी को यह न ज्ञात था कि वह किस नगर में है। उसकी अनुपस्थिति में मोनाल्डश्ची का राजकु- मार जिसका विवाह रोजाबिला के साथ निश्चित हो चुका था अपना परिणय करने के लिये वेनिस में आया परन्तु एक मास प्रथम महाराज को उसके आने का समाचार श्रवण कर जितना हर्ष होता अब वह शेष न था। इसके अतिरिक्त रोजाबिला भी रोगाक्रांत होने के कारण उस समागत से समागम नहीं कर