पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१२

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'वेनिस का बाँका' का कथा भाग अत्यन्त हृदयग्राही और रोचक है, वही लोगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। हमारे मित्र पंडित केदारनाथ पाठक भी उसकी रोचकता पर मुग्ध हैं। प्रथम संस्करण के शीघ्र निःशेष होने पर भी दूसरा संस्करण अबतक नहीं हुआ था, कारण यह कि इधर किसी की दृष्टि नहीं गई। जिस प्रेस में पहले ग्रन्थ छपा था, वह बन्द हो चुका है, प्रकाशक का पता नहीं। मैं भी इस विषय में एक प्रकार से उदासीन था। किन्तु उक्त पण्डितजी की सहृदयता रंग लाई, और वे ग्रंथ का दूसरा संस्करण निकलवाने के लिये कटिवद्ध हो गये। यह दूसरा संस्करण उन्हीं के उद्योग और उत्साह का फल है। उनके चि० पुत्र श्री रामचन्द्र पाठक (पाठक एन्डसन) द्वाराही यह ग्रंथ प्रकाशित हुआ है। मैंने अब की बार ग्रन्थ की भाषा का संशोधन बहुत कुछ कर दिया है। फिर भी भाषा संस्कृत गर्भित है। बिल्कुल काया पलट करना उचित नहीं समझा गया, क्योंकि ग्रन्थ की भाषा का हिन्दी के उत्थान काल से बहुत कुछ सम्बन्ध है।

अन्त में यह दूसरा संस्करण प्रकाशित करने के लिये मैं उक्त पंडितजी को हृदय से धन्यवाद देता हूँ, और उनके इस उत्साह एवं अध्य साय की प्रशंसा करता हूँ। आशा है, हिन्दी संसार ग्रंथ का समुचित आदर कर उनके उत्साह की वृद्धि करेगा। यदि इस उपन्यास को पढ़कर पाठक गण थोड़ा आनन्द भी लाभ करेंगे तो मैं अपने परिश्रम को सफल समझूगा।

कानपुर
८-१-२८
विनयावनत
हरिऔध