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पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१४

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परम्परागत पांडित्य ही इस परिवार की प्रधान जीविका है। यहीं सं॰ १९२२ वि॰ के वंशाख कृष्ण तृतीया को आपका जन्म हुआ। आप के पिता तीन भाई थे जिनके नाम क्रम से ब्रह्मा- सिंहजी, भोलासिंहजी और बनारसीसिंहजी उपाध्याय थे। पं॰ भोलासिंहजो ही हमारे चरितनायक के पिता और श्रीमती रुक्मिणी देवी माता थीं। आरके पिता अत्यन्त कार्यकुशल और परोपकारी पुरुष थे तथा माता भी एक विदुषी और धर्म परायण महिला थीं। इन दोनों व्यक्तियों के पवित्र जीवन का प्रभाव चरित-नायक पर विशेष रूप से पड़ा है।

आपके पितृव्य पं॰ ब्रह्मासिंह जो एक अच्छे विद्वान और सच्चरित्र पुरुष थे। उन्होंने घर पर इन्हें पांच वर्षको अवस्था में विद्याध्ययन प्रारम्भ कराया और सात वर्ष की अवस्था में आप निज़ामाबाद के तहसीला स्कूल में भरती किए गए। वहाँ से सं॰ १६३६ वि॰ में वर्नाक्यूलर मिडिल परीक्षा पास कर काशी के क्वीन्स कालोजिएट स्कूल में अंग्रेजी पढ़ने लगे। आएको मिडिल परीक्षा उत्तमतापूर्वक पास करने के कारण मासिक छात्रवृत्ति भी मिलती रही, पर स्वास्थ्य के बिगड़ जाने पर उन्हें शाघ्र ही घर लौट जाना पड़ा और इस प्रकार अंग्रेजी शिक्षा की इतिश्री हो गई।

घर पर रहते हुए भी इनकी शिक्षा बराबर चलनी रही और उन्होंने चार पाँच वर्ष तक उर्दू, फारसी तथा संस्कृत का अभ्यास किया। सन् ८०२ ई॰ में आपका विवाह हुआ और इसके दो वर्ष बाद निजामाबाद के तहसाली स्कूल में आप अध्यापक नियुक्त हुए। इन्हीं दिनों आपने कचहरी के काम काज सीखने में मन लगाया और सन् १८८७ ई॰ में नार्मल परीक्षा में भी उत्तीर्ण हो गये। मातृभाषा प्रेमी वा धनपतिलालजी के अनुरोध से, जो उस समय आज़मगढ़के सदर कानूनगो थे, आपने