बुद्धि ठिकाने आई, अच्छा देखिये आगे क्या क्या होता है॥' फ्लोडोआर्डो को प्रस्थान किये हुये तेईस घण्टे व्यतीत हो चुके थे, और अब चौबीसवां भी समाप्त होने को था परन्तु अब तक उसका पता न था॥
द्वाविंशति परिच्छेद।
गत परिच्छेद के अन्त में निरूपण हो चुका है, कि फ्लोडोआर्डो के नियत किये हुये समय से पौन घण्टे से कुछ ऊपर समय हो चुका था, पाँच बजाही चाहता था, पर अब तक उसका कहीं कुछपता न था। उसके बिलम्ब करने से महाराज अत्यंत व्यतिव्यस्त थे, और वे महाशय जिन्होंने उसकी ओरसे एक सहस्र स्वर्णमुद्रायें लगायीं थीं अपनी मुद्राओं के लिये अलग अकुला रहे थे। यदि प्रसन्न थे तो परोजी और उसके सहकारी, क्योंकि वे यह समझते थे कि अब कुछ काल में सहस्त्र स्वर्ण मुद्रायें बिना परिश्रम हम लोगों को हस्त गत होंगी, और महाराज और उनके पक्षपाती मुँह की खायेंगे॥
काण्टेराइनो प्रच्छन्न रीति से लोगों को बनाता था, और कहता था, कि यदि अबिलाइनों पकड़ जाय और लोगों को इस कण्टक के निवारण हो जाने से सुख प्राप्त हो, तो सहस्त्र स्वर्णमुद्रायें क्या वस्तु हैं मैं बिंशति सहस्त्र प्रदान करने के लिये तयार हूँ॥
वे लोग इसी संकल्प विकल्प में थे कि घड़ियालीने ठनाठन पाँच का घण्टा बजाया, और प्रत्येक व्यक्ति एकाग्र मानस से उसको गिनने लगा। एक बड़े कठिन कार्य्य के पूरा करने का