तुम्हारे निमित्त न जाने और क्या करने के लिये तैयार हूँ अब मैं केवल इस बात की प्रतीक्षा करता हूँ कि तुम एक शब्द हाँ अथवा नाहीं कह दो बस झगड़ा समाप्त हुआ। बोलो तुम अब भी मुझसे स्नेह रखनी हो?'॥
रोजाबिला ने फिर भी उसके प्रश्न का कुछ उत्तर न दिया परन्तु एक बार उसकी ओर इस स्नेह और प्रीति की दृष्टि से अवलोकन किया, जिससे स्पष्ट प्रकट होता था कि अब तक उसका मन अबिलाइनो के अधिकार में अथवा उसके वशवर्ती है-फिर वह उसके निकट से यह कहती हुई कामिला के अंक में जागिरी 'परमेश्वर तुम पर कृपा करे तुमने बेढंग मुझको सताया'॥
इस समय नृपति महाशय की चेतनाशक्ति सपाटूकी यात्रा करके पलट आई और वह अपने स्थान से उठ खड़े हुये। उन को मुख क्रोध के मारे लाल हो रहा था और मुख से सीधी बात नहीं निकलनी थी। उठतेही अविलाइनो की ओर झपट पड़े परन्तु इतनी कुशल हुई कि कुछ लोग बीच में आ गये और उन्होंने रोक लिया। अबिलाइनों उनके समीप अत्यन्त स्थिरता और निर्भयता पूर्वक गया और उनसे क्रोध कम करने के लिये कहा॥
अविलाइनो―'महाराज कहिये अव आप अपनी प्रतिज्ञा पालन की जियेगा अथवा नहीं आपने इतने लोगों के सामने बचन हारा है'॥
अंड्रियास―'चुप दुष्टात्मा कृतघ्न! देखिये तो इस दुष्टने किस युक्ति से मुझको फाँसा है, भला आपही लोग कहें कि यह मनुष्य इसके योग्य है कि मैं प्रतिज्ञा पालन करूँ' इसने यहाँ बहुत दिन से डाकू का कर्म करना प्रारम्भ किया और वेनि- सके अच्छे अच्छे लोगों को मिट्टी में मिलाया। उसी अनुचित