पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१६६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४९
चतुर्विंश परिच्दछे
 

रोजाविला―(महाराज के चरणों से लिपट कर) 'मेरे अच्छे पितृव्य उस पर दया करो, वह पापात्मा है परन्तु उसे परमेश्वर पर छोड़ दो, वह पाप कर्म्म रत है परन्तु रोजाविला अब तक उससे स्नेह करती है।'

अंड्रियास―(क्रोध से उसको हटा कर) दूर हो ऐ मन्दभाग्ये! मुझे उन्माद हो जायगा।



चतुर्विंश परिच्छेद।

अबिलाइनो रोजाबिला का स्नेह और महाराज की निष्ठुरता को चुपचाप खड़ा देखता था, और उसकी आँखों में आँसू डबडबा रहे थे। रोजाबिला ने महाराज का हाथ दो बार चुम्बन कर कहा 'यदि आप उस पर दया नहीं करते तो मानों मुझ पर नहीं करते, जो दण्ड आप उसके लिये अवधारण कीजियेगा वह मेरे निमित्त पहले हो चुका, मैं अपने और अविलाइनो दोनों के लिये आपसे क्षमा और दया की याचना करती हूँ, वह न होगा तो मेरा जीना भी कठिन है, परमेश्वर के लिये पूज्य पितृव्य मेरा कहना मान लीजिये और उसे स्वतन्त्रता प्रदान कीजिये।

इतनी प्रार्थना करने पर भी महाराज ने स्पष्ट उत्तर दे दिया कि अविलोइनो बच नहीं सकता अवश्य फांसी पावेगा।

अबिलाइनो―क्यों महाशय यही सौजन्य है कि वह बेचारी आपके चरणों पर गिर कर रुदन करे और आप खड़े देखा करें, धिक्कार है ऐसी कठोरता पर, जावो बस ज्ञात हुआ कि तुम निरे जंगली हो, तुम कदापि रोजाबिला के साथ उतना