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पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१७६

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संपादक ने मिलान के लिए भूमिका में कुछ संस्कृत श्लोक भी दे दिए हैं जिनसे पता चलता है कि पुस्तक में अलंकारों के लक्षण आदि कहाँ से लिए गए हैं। पुस्तक के परिशिष्ट में सब लक्षण विस्तार के साथ गद्य में समझा दिए गए हैं।

लाला भगवानदीन जी लिखते हैं―भाषाभूषण का तो ऐसा उत्तम संस्करण पहले कभी निकला ही नहीं। साहित्य प्रेमियों को चाहिए कि इस ग्रन्थ का आदर करके संपादक महाशय का उत्साह बढ़ावें।

स्थानाभाव से सरजॉर्ज ग्रिअर्सन, डाक्टर ग्रेहेम बेले आदि अनेक विद्वानों तथा पत्रिकाओं की सम्मतियाँ नहीं उद्धत की गई हैं।

कमलमणि ग्रंथमाला की प्रथम मणि―

महाकवि बाबू गोपालचन्द्र उपनाम गिरिधर दास कृत

१―जरासंधबध महाकाव्य

यह काव्य वीर रस पूर्ण है और हिंदी साहित्य में यह पहिला महाकाव्य माना जाता है जो अब अलभ्य हो रहा है। हिंदी कविता प्रेमी इस ग्रन्थ की बाट बहुत दिनों से देख रहे थे। यमक अनुप्रास १) आदि की बहार पठनीय ही है। काव्य की क्लिष्टता कुछ अंशों में दूर करने के लिए पाद टिप्पणियाँ भी दे दी गई हैं। बाबू राधाकृष्णदासजी ने भारतेंदु बाबू स्व॰ हरिश्चन्द्र की जीवनी में लिखा है कि 'जरासंधबध महाकाव्य बहुत ही पांडित्यपूर्ण वीररस प्रधान ग्रन्थ है। भाषा में यह ग्रन्थ एम॰ ए॰ का कोर्स होने योग्य है।' महाकवि का चित्र तथा चरित्र दिया गया है। पृष्ठ संख्या २००, मूल्य १।)सजिल्द; १) अजिल्द

श्रद्धेय पं॰ महावीर प्रसादजी द्विवेदी–प्राचीनों की शैली को ध्यान में रखते काव्य उत्तम है–वीररस से परिप्लुत है। महाकाव्य के लक्षण इसमें पूरे तौर से घटित होते हैं।