साहित्य-सेवा-सदन, काशी
द्वारा
(होली, सं॰ १९८३ वि॰ तक)
प्रकाशित पुस्तकें
बिहारी-सतसई सटीक
[ ७०० सातो सौ दोहों की पूरी टीका ]
टीका॰ लाला भगवानदीन
यह वही पुस्तक है कि जिसके कारण कविकुल-कुमुद -कलाधर बिहारीलाल की विमल ख्याति-राका साहित्य संसार के कोने कोने में अजरामरवत् फैली हुई हैं और जिसकी कि केवल समालोचनाने ही विद्वन्मण्डली में हलचल मचा दी है। सच पूछिए तो श्रृङ्गारस में इसके जोड़की कोई भी दुसरी पुस्तक नहीं है। यह अनुपम और अद्वितीय ग्रन्थ है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही हैं कि आज २५० वर्षों में ही इस ग्रन्थ की ४०.५० टीकाएँ बन चुकी हैं। इतनी टीकाएँ तो तैयार हुई हैं, किन्तु वे सभी प्राचीन ढंगकी हैं, इसीलिए समझमें जरा कम आती है। उसी कठिनाई को दूर करने के लिए साहित्य संसारके सुपरिचित कविवर लाला भगवानदीनजी, प्रो॰ हिन्दू-विश्व-विद्यालय, काशी, ने अर्वाचीन ढंगकी नवीन टीका तैयार की है। टीका कैसी होगी, इसका अनुमान पाठक टीकाकारके नामसे ही करलें। इसमें बिहारी के प्रत्येक दोहे के नीचे उसके शब्दार्थ, भावार्थ, विशेषार्थ, वचन- निरूपण, अलंकार आदि सभी ज्ञातव्य बातोंका समावेश किया गया है। जगह-जगहपर सूचनाएँ दी गयी हैं। मतलब यह कि सभी जरूरी बातें इस टीका में आ गयी हैं। दूसरे परिवर्द्धित तथा सँशा- धित संस्करणका मूल्य १।=)। बढ़िया कागज़ सचित्र का मूल्य १।।)