पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/१८४

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काव्य-ग्रंथरत्न-माला-छठाँ रत्न

गो॰ तुलसीदासजी कृत

विनय―पत्रिका सटीक

( टीकाकार-वियोगीहरि )

सर्वमान्य 'रामायण' के प्रणेता महात्मा तुलसीदासजी का नाम भला कौन नहीं जानता? बड़े से बड़े राजमहलों से लेकर छोटे से छोटे झोपड़ों तक में गोस्वामीजी की विमल कीर्ति की चर्चा होती है। क्या राव, क्या रँक, क्या बालक, क्या वृद्ध, क्या मर्द, क्या औरत सभी उनके रामायण का पाठ प्रतिदिन करते हैं, अङ्करेजी-साहित्य में जो पद शेक्सपियर का है,जो पद संस्कृत- साहित्य में कालिदास का है, वही पद हिन्दी-साहित्य में तुलसीदास को प्राप्त है। उपर्युक्त 'विनयपत्रिका' भी इन्हों गोस्वामी तुलसीदा- सजीकी कृति है। कहते हैं कि गोस्वामीजी की सर्वश्रेष्ठ रचना यही विनय-पत्रिका है। विनय-पत्रिका का-सा भक्ति-ज्ञान का दूसरा कोइ ग्रन्थ नहीं है। इसमें गोस्वामीजी ने अपना सारा पाण्डित्य खर्च कर दिया है। इसकी रचना में उन्होंने अपनी लेखनी का अद्भुत चम- कार दिखलाया है। गणेश, शिव, हनुमान, भरत, लक्ष्मण आदि पार्षदों-सहित जगदीश श्रीरामचन्द्र की स्तुति के बहाने वेदान्त- के गूढ़ तत्त्वों का समावेश कर दिया है। वेद, पुराण,उपनिषद, गीतादि में वर्णित ज्ञान की सभी बातें इसमें गोगर में सागर की भाँति भर दी गयी हैं। यह भक्ति-ज्ञान का अपूर्व ग्रन्थ है। साहित्य- की दृष्टि से भी यह उच्चकोटिका ग्रन्थ है। इतना सब कुछ होने पर भी इसका प्रचार रामायण के सदृश न होने का एक यही मुख्य कारण है कि यह पुस्तक, भाषा में होने पर भी, कठिन है। दूसरे वेदान्त के गूढ़ रहस्यों का समझ लेना भी सब किसीका काम नहीं है तीसरे अभी तक कोई सरल, सुबोध तथा उत्तम टीका भी इस ग्रन्थ पर नहीं बना। इन्हीं कठिनाइयों को दूर करने के लिए सम्मेलन-पत्रि-