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काव्य-ग्रन्थरत्न-माला-चतुर्थ रत्न

केशव―कौमुदी

(रामचन्द्रिका सटीक)

हिन्दी के महाकवि आचार्य केशव की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक रामचन्द्रिका का परिचय देना तो व्यर्थ ही है। क्योंकि शायद ही हिन्दी का कोई ऐसा ज्ञाता होगा, जो इस ग्रन्थ के नाम से अपरिचित हो। अतः केशव की यह पुस्तक जितनी ही उत्तम तथा उपयोगी हैं, उतनी ही कठिन भी है। अर्थ कठिनता में केशव की काव्य प्रतिभा उसी प्रकार छिपी पड़ी हुई हैं, जिस प्रकार रुई के ढेर में हीरे की कान्ति। केशव की इसी काव्यप्रतिभा को प्रकाश में लाने के लिए यह सम्मेलनादि में पाठ्य-पुस्तक नियत की गयी है। परीक्षार्थियों को इसका अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। पर, पुस्तक की कठिनता के आगे इनका कोई वश नहीं चलता। उन्हें लाचार होकर हिन्दी के धुरँधरों के पास दौड़ना पड़ता है। किंन्तु वहाँ से भी "भाई हम इसका अर्थ बताने में असमर्थ है" का उत्तर पाकर बैरङ्ग लौटना पड़ता है। खासकर इसी कठिनाई को दूर करने तथा उनके अध्ययन-मार्ग को सुगमतर बनाने के लिए यह पुस्तक प्रकाशित की गयी हैं। इस पुस्तक में रामचन्द्रिका के मूल छन्दों के नीचे उनके शब्दार्थ, भावार्थ, विशेषार्थ, नोट, अलंकारादि दिये गये हैं। यथा स्थान कवि के चमत्कार निर्दशन के साथ-ही-साथ काव्य-गुणदोषों की पूर्ण रूप से विवेचना की गयी है। छन्दों के नाम तथा अप्रचलित छन्दों के लक्षण भी दिये गये हैं। पाठ भी कई हस्तलिखित प्रतियों से मिलाकर संशोधित किया गया हैं। इन सब विशेषताओं से बढ़कर एक विशेषता यह है कि इसके टीकाकार हिन्दी के सुप्रसिद्ध विद्वान् तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लाला भगवानदीनजी हैं। पुस्तक परीक्षार्थीतर सज्जनों के भी देखने योग्य है। यह पुस्तक दो भागों में समाप्त हुई है। मूल्य साढ़े पाँच सौ पृष्ठोंके प्रथम भाग का, जिसमें रंग-विरंगे चित्र भी है, २।।।), सजिल्द ३)। दितीय भाग का २।), सजिल्द २॥)।

Sanctioned as a reference book for Hindi Teachers in high schools of Central Provinces & Berar.

Vide order no. 6801, Dated 28.9-26.