पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२२

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पहला परिच्छेद
 

मैंने तुझे और उसको चुम्बन किया, तो हृदय पर साँप लोट जाता है। वह तो हम दोनों को परित्याग परलोक सिधारी पर मैं तुझ से जीवित रहते पृथक् न हूंगा।" इतना कहकर उसने नेत्रों को अश्रुपूर्ण कर लिया। फिर एक क्षण में आंसू पोंछ कर कहने लगा" नहीं २ मेरी आँखों में आँसू न थे यह निशीथ काल की शीतल और तीव्र वायु का प्रमाद है कि उनमें पानी भर आया, नहीं तो आँसू कैसे, रोने के दिन अब गये।" यह कह कर उस अभागे ने अपना सिर पृथ्वी पर पटक दिया और आकुलता वश चाहा कि अपने जन्मकाल को बुरा कहे, परन्तु फिर सँभल गया और अपना सिर किहुनी से टेक कर शोकपूरित ध्वनि से एक गीत जिसे वह निज बाल्यावस्था में स्वगुरु जनों के रम्य भवनों में प्रायः गान किया करता था, गुनगुनाने लगा। फिर बोला "ठीक है यदि मेरे अभाग्य के बोझ ने मुझे दया लिया तो कुछ न हुआ।

इतने में किसी की पद-परिचालाना की आहट सी ज्ञात हुई। पीछे फिर कर देखा तो पास की एक गली में 'जहांकलितकौमुदी के कारण झुटपुटा सा था, एक बृहत् डोल का मनुष्य कपड़ा मुख पर डाले मन्द मन्द टहलता दिखलाई दिया। उसे देख कर पथिक निज मन में कहने लगा "कदाचित् इस निर्जन स्थल में इस व्यक्ति को परमात्मा ने मेरे ही लिये भेजा है, मैं-मैं, (थोड़ा रुक कर) अब भिक्षाप्रार्थी हूंगा। वेनिस में भिक्षा माँग खाना नेपल्स में प्रतारकता करने से सहस्र गुण उत्तम है, सम्भव है कि महात्मा की जीर्ण गुदड़ी में उसके अन्तर का अमूल्य लाल यथावत् बना रहे" यह कह कर वह उठ खड़ा हुआ और उस पुरुष की ओर बढ़ो। गली में प्रवेश करते ही देखता क्या है कि दूसरी ओर से एक तीसरा पुरुष और पाया परन्तु उस मनुष्य को