पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२३

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वेनिस का बांका
 


टहलता हुआ देखकर एक गृह की ओट में जा छिपा। पथिक ने सोचा कि यह मनुष्य गूढ़ पुरुषों की भाँति कोने में घात लगा कर क्यों खड़ा हुआ, कहीं यह उन लोगों में से तो न हो जो कौड़ी कौड़ी पर दूसरों का अमोल जीवन लेने और अपना देने को प्रस्तुत हो जाते हैं! संभव है किसीने उसके विभव पर दाँत लगाया हो और इस पुरुष को उसके विनाश के लिये तानात किया हो, वह बेचारा किस निश्चिन्तता के साथ टहल रहा है। जो हो, पर बचाजी तुम भी सँभल जाना, फूल न उठना, यह देखो में उसकी सहायता को प्रा पहुंचा। यह कहकर पथिक भीत की छाया में उसकी ओर बढ़ा और वह जहाँ का तहाँ खड़ा रहा। ज्यों ही वह दूसरा अपरिचित व्यक्ति इन दोनों के पास से होकर जाने लगा त्यों ही उक्त गूढ़ पुरुष ने अपने स्थान से उचक कर चाहा कि, एक हाथ कटार का ऐसा लगावे कि मण्डारा खुल जाय परन्तु पथिक ने झपट कर उसके हाथ से कटार छीन लिया और उसे पृथ्वी पर देमारा! अपरिचित ने पीछे फिर कर कहा "ऐं यह धमा चौकड़ी कैसी?" डाकू तो उठ कर पलायित हुआ और पथिक ने मुसकरा कर कहा महोदय, कुछ नहीं यह एक बात थी जिससे आपके जीवन की रक्षा हुई।" अपरिचित-"क्या कहा? मेरी जीवनरक्षा क्या हुई?" पथिक-"यह भलेमानस जो अभी नौ दो ग्यारह हुए पहले आपके पीछे बिल्ली के समान दबे पैर गये और कटार तान ही चुके थे कि मैंने देख लिया और आपकी जीवन रक्षा हुई। अब कुछ मेरी भी सुनिये। क्षुधा के कारण मेरी बुरी दशा है, यदि एक पैसा दीजिये तो बड़ा धर्म होगा। महाशय! परमेश्वर के लिये मुझे कुछ दीजिये। अपरिचित-" चल दूर हो, दुष्ट कहीं का, मैं तुझे और तेरे