पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२८

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दूसरा परिच्छेद
 

मेरी यह दशा है तथापि स्मरण रक्खो कि इन हाथों में वह शक्ति है कि चाहे मनुष्य तिहरा कवच क्यों न पहने हो पर कटार कलेजे में उतर जाय तो सही, और इन चक्षुओं में वह प्रकाश है कि कैसा ही अँधेरा क्यों न हो, परन्तु लक्ष्य चूक जाय तो बात नहीं॥

डाकू-भला तो फिर तुमने अभी मुझे धरातल पर क्यों दे मारा था?

अविलाइनों-यह समझ कर कि कुछ मिलेगा, परन्तु यद्यपि मैंने उसकी जीवन रक्षा की पर उस दुष्ट ने एक कौड़ी भी नहीं दी।

डाकू-नहीं दी तो अच्छा हुआ, परन्तु सुनों गुरू तुम्हारे मन में कुछ कपट छल तो नहीं है?

अविलाइनों-निराश व्यक्ति असत्य भाषण नहीं करता।

डाकू-और जो तुमने छल किया तो?

अविलाइनों-तो मेरा कलेजा है और तुम्हारा कटार।

तीनों डोकुओं ने फिर धीरे २ परस्पर कुछ समालाप किया और तदुपरांत अपने अपने कटार को कोश में कर लिया। फिर एक ने अविलाइनों से कहा “अच्छा आओ हमारे घर चलो राजमार्ग पर ऐसी बातें करना उचित नहीं"॥

अविलाइनों-चलने को तो मैं चलता हूँ पर स्मरण रखना कि यदि तुममें से किसी ने मुझ पर अंगुलि-प्रहार भी किया तो फिर सबका भाग्य फूटा। मित्र क्षमा करना कि मैंने अभी तुम्हारी पसलियां बेढंग ढीली कर दीं, पर इसके बदले में धर्म का भाई बन कर रहूँगा।

इस पर तीनों डाकुओं ने एक मुँह होकर कहा “हम लोग बचनबद्ध होते हैं और बात हारते हैं कि तुम्हारे साथ कोई बुरा बर्ताव न होगा, जो तुम्हारी ओर आंख उठा कर देखेगा