पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/२९

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वेनिस का बांका
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वह हमारा शत्रु है। तुम्हारी सी प्रकृति के मनुष्य से और हम लोगों से भली भांति निबहेगी । चलो किसी प्रकार का और संशय न करो" यह कह कर वह लोग आगे बढ़े और अविलाइनों उनके बीच में हो लिया बार बार वह चौकन्ना होकर श्रागे पीछे देखता जाता था, परन्तु किसी में कुछ बुरा अथवा दुष्टता का उद्योग उसने नहीं पाया, चलते चलते वह लोग एक नहर पर पहुँचे और एक लघुनौका जो कूल पर बँधी थी खोली, चारो पुरुष उस पर सवार हुए, खेते २ नगर के सिरे पर निकल आये और नौका से उतर कर कई गली कूचों को समाप्त करते हुए एक मनोहर प्रासाद के समीप जाकर कुण्डा खड़खड़ाया। एक नववयस्का युवती ने भीतर से कपाटों को खोला, और उन लोगों को एक साधारण पर विस्तृत परिसर में ले जाकर बिठलाया, बार बार वह आश्चर्य की दृष्टि से अविलाइनों की ओर देखती थी। ए महाशय कुछ प्रसन्न, कुछ व्यग्र, जी में कहते थे कि मैं कहां पाया और रह रह कर यही सोचते थे कि डाकुओं के कथन पर पूर्ण विश्वाल तथा भरोसा करना बुद्धिमत्ता से दूर है।


तीसरा परिच्छेद

न लोगों को बैठे हुए विलम्ब नहीं हुआ था कि किसी अपरने द्वार पर पाकर पुकारा। उसी युवती अबला ने जिसका नाम सिन्थिया था जाकर कपाट खोला। अब उस समूह में दो पुरुष और प्राकर मिले और इस नूतन अतिथि को नख से शिख पर्यन्त घूरने लगे। जिन लोगों ने उसे उस बुरी समज्या में लाकर मिलित किया था, उन में से एक पुरुष