पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
वेनिस का बांका
१४
 


मुख पर इस प्रकार से उड़ते थे कि मानो मार्जनी बन कर कुरूपता को स्वच्छ करने का प्रयत्न करते हों। मुख इतना चौड़ा कि मसूड़े और दांत देख लीजिये । इस पर विशेषता यह कि वह बार बार मुख ऐसा चलाया करता था कि प्रत्येक समय दांत निकले ही रहते थे। उस की आँख (जो कि एक ही थी) शिर में इतनी घुसी हुई थी कि सुपेदी के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखलाई देता था। पर उस को भी असित घनी आकुंचित भृकुटियोंने ढक लिया था। प्रयोजन यह कि उस के मानन में तमाम भोंड़ी और कुरूपता सम्बन्धी बातें एकत्रित थीं। जिनके देखने से यह ज्ञात होता था कि वह उसकी खंता के दृढ़ चिन्ह हैं या धृष्टता के अथवा दोनों के। खाने के पीछे अबिलाइनो ने मदिरा, जो पानपात्र में भरी थी,पृथ्वी पर फेक दी ओर उन लोगो से कड़ककर कहा 'अब आप लोग कहिये मैं पेटभर खा चुका और पूर्ण तृप्त हो गया, जो कुछ मुझ से पूछना हो पूछिये मैं उत्तर देने को तैयार हूं।

माटियो बोला "पहली बात हमको यह जांचनी है कि तुम्हारे शरीर में शक्ति है अथवा नहीं क्योंकि हमारे सम्पूर्ण कार्यों के लिये यह अतिआवश्यक है। मल्ल युद्ध करना जानते हो न?,।

अविलाइनों-मैं नहीं कह सकता परीक्षा कर देखो।

माटियो-सिन्थिया पात्रों को यहांसे हटा दे, ले अब अविलाइनो किससे मल्लयुद्ध करोगे? हम में से तुम किसे समझते हो कि इस नवशिक्षित पीट्रैनो की भांति सुगमता के साथ दे मारोगे?"।

अबिलाइनो-"ऐं किसे? अजी तुम सबों को वरन तुम्हारे ऐसे दश और छोकरों को,। यह कहकर वह अपने स्थान से कूद कर खड़ा हो गया और पलमात्र में सबों की