पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/४

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प्रकाशक का निवेदन ।

पूज्यवर श्रीयुक्त पं० अयोध्यासिंह उपाध्याय साहित्यरत्न का इस समय राष्ट्रभाषा हिन्दी के कवियों और लेखकों में जो उच्च स्थान है वह हिन्दी पाठकों से छिपा नहीं है। "ठेठ हिन्दी का ठाठ" "अधखिला फूल" आदि अनेक ग्रन्थों से यह सिद्ध होता है कि हिन्दी गद्य पर आपका कैसा अधिकार है। "प्रिय प्रवास" आदि काव्य ग्रन्थ आपकी उच्च कोटिकी प्रतिभा और कवित्व शक्ति के जाज्वल्य प्रमाण हैं। ये तथा आप के लिखे और अनेक ग्रन्थ ऐसे हैं जो बहुत दिनों तक हिन्दी साहित्य निधि के अमूल्य रत्न समझे जायेंगे और जिनकी गणना अब तक स्थायी साहित्य में होती आई है और बहुत दिनों तक होती रहेगी। मेरी तो यह धारणा है कि मुझ जैसे अल्पशका पंडित जी की योग्यता के सम्बन्ध में कुछ कहना या उनका कृतियोकी प्रशंसा करना मानो सूर्य को दीपक से दिखलानेका प्रयत्न करना है। तो भी कर्तव्यवश मुझे इस अवसर पर इतनी धृष्टता करनी पड़ी है। इसके लिए मैं पूज्य पंडित जी से तो विशेषतः और हिन्दी पाठकों से साधारणतः क्षमा प्रार्थना करता हुआ इस प्रसंग को यहीं समाप्त करता हूँ।

पंडित जी की अनेक कृतियों में एक प्रधान कृति यह 'वेनिसका बांका' नामक उपन्यास भी है जो काशी पत्रिका में प्रकाशित अंगरेजी के कए प्रसिद्ध पुस्तक के उर्दू अनुवाद के आधार पर सन् १८८८ में लिखा गया था। उस समय हिन्दी की जो आरम्भिक और हीन दशा थी, उसका कुछ ठीक ठीक वर्णन वही लोग कर सकते हैं जो उस समय अथवा उसके कुछ ही