पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/४८

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षष्ठ परिच्छेद
 

कोमलाङ्गी, क्षामोदरी, की आँखों से लड़ी अबिलाइनो लज्जा से पानी पानी हो गया। रोजाबिला अपने घातक की साम- यिक अवस्था देख अश्रु पूरित नेत्र से उसके सामने खड़ी थी जिससे वह अविलाइनो को और भी प्रिय ज्ञात होने लगी। कियत कालोपरान्त वह अत्यन्त कोमल स्वर से पूछने लगी 'क्यों अब तुमको कुछ सुख जान पड़ता है, उस कपटी ने धीमी वाणी से कहा' हाँ सुख है, सुख है, तुम्ही वर्त्तमान महाराज की भ्रातृजा रोजाविला हो,।

"जी हाँ मैं ही हूँ,,

अबिलाइनो―सुनो राजकुमारी मुझे तुम से कुछ कहना है देखो सावधान और सजग रहो, घबराओ नहीं, जो कुछ मैं कहने वाला हूँ वह तुम्हारे बड़े लाभ की बात है और उसके लिये बड़ी बुद्धिमत्ता आवश्यक है, हे नारायण! संसार में ऐसे कठोरचेता लोग भी हैं, राजनन्दिनी तुम्हारा प्राण बड़ी आपत्ति में पड़ा चाहता है,।

रोज़ाबिला यह सुनकर कांप उठी, कपाल स्वेदाक्त होगया और आनन पीत वर्ण।

अबिलाइनो―तुम अपने नाशक को देखा चाहती हो? तुम्हारा बालतक बीका न होगा, परन्तु यदि तुम अपना जीवन चाहती हो तो मौन रहो।

रोज़ाबिला की संज्ञा उस समय लुप्तप्राय थी, और चित्त ठिकाने न था कि कुछ बोलती, उस वृद्ध पुरुष की बातों से उसके छक्के छूट गये, और उसे मूर्छा आच्छादन करने लगी।

अबिलाइनो―राजात्मजे! तुम किसी प्रकार का भय मत करो, जब तक मैं यहाँ हूँ तुम्हारे लिये यह भय का स्थान नहीं