पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१
षष्ठ परिच्छेद
 

तुम्हारे जीवन की रक्षा अबिलाइनो ने की रोजाबिला को बात करने की शक्ति न थी उसने अपना हाथ अबिलाइनो की ओर बढ़ाया और उसका हाथ अपने हाथ में लेकर धन्यबाद प्रदान की भांति चूम लिया। अविलाइनों हर्ष और आश्चर्य्य की दृष्टि से उस कृशोदरी को देख रहा था, मेरी अनुमति तो यह है कि संसार में कोई पुरुष ऐसा नहीं है जो ऐसी दशा में अपने को अधिकार में रख सकता। एक तो रोजाबिलाका षोड़श अथवा सप्तदशाब्द का वयःक्रम, युवावस्था का प्रारम्भ, दूसरे सुन्दर स्वेत परिच्छद, असित प्रमादपूरित अँखड़ियाँ, स्वच्छ विशाल भाल, स्वर्ण-वर्ण आकुञ्चित केश-जाल, पाटल सरस-दलोपमेय कपोल, और पतले पतले विम्बाफल समकक्षी ओष्ठ, ऐसे थे जिन्हें देखकर देवजात का मन धैर्य्यरहित हो हाथ से जाता रहे। स्वरूप देखने से परमेश्वर की शक्ति स्मरण होती थी और यही ज्ञात होता था कि उस रचयिता ने इस लावण्य-पुत्तलिका को स्वकर-कमलों से विरचित किया है। नख से शिख पर्य्यन्त सिवाय सद्गुण के कोई अवगुण दिखलाई नहीं देता था। ऐसी कोमलाङ्गी को यदि अबिलाइनो हक्का बक्का खड़ा देखा किया और कतिपय क्षण के आनन्द के लिये सदैव की उद्विग्नता मोल ली तो कोई आश्चर्य्य की बात नहीं! निदान कुछ काल के उपरान्त वह कर्कश स्वर से बोल उठा "शपथ है परमेश्वर की, रोज़ाबिला तेरी सुन्दरता अद्भुत और अलौकिक है, वलीरिया भी तुझसे अधिक सुन्दर न थी।" यह कहकर उसने रोजाबिला के कपोलों का एक बार चुम्बन किया! रोजाबिला भय से काँप उठी और कहने लगी “ऐ भयंकर व्यक्ति तू मेरे समक्ष से अन्तर्हित हो, परमेश्वर के लिये चला जा,।

अबिलाइनो―हाय! रोज़ाबिला तू इतनी सुन्दर क्यों है