था। ज्योंही माटियो के मारे जाने और रोजादिलाके जीवित बचजाने का समाचार कर्णगत हुआ। वह अपने मन में अत्यन्त आकुल हुआ कि ऐं यह क्या हुआ। मारे व्यग्रता के वह अपने आयतन में टहलने और स्वगत यों कहने लगा “परमेश्वर का कोप उस मंदभाग्य की अज्ञानता पर, परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि यह दुर्घटना किस प्रकार संघटित हुई। किसी ने मेरा भेद जान तो नहीं लिया? मैं पूर्ण अभिज्ञ हूँ कि विरैनो रोजाबिला पर मोहित है अतएव क्या आश्चर्य्य है कि उसीने इस दुष्टात्मा अविलाइनो को मेरे कार्य में विघ्न डालने के लिये माटियो के पीछे लगा दिया हो। यदि कहीं महाराज ने इस विषय की छानबीन की कि उनकी भ्रातृजा के प्राणहरण के लिये मोटियो को किसने भेजा था तो सिवाय परोजी के जिसके साथ रोजाविलाने विवाह करना अस्वीकार किया और जिससे अनड्रिआस आन्तरिक विरोध रखता है और किस पर संशय होगा। और जहाँ एकबार पता लगा और अंड्रियास पर तुम्हारी कूटनीति प्रगट हो गई और उसे ज्ञात होगया कि तुमने अपने को बहुत से दुष्कर्मियों का अग्रगण्य बना रक्खा है―क्योंकि ऐसे छोकरों को जो मार से बचने के लिये अपनी माता पिताके घर मे आग लगा दें सिवाय दुष्कर्मी के और क्या कह सकते हैं-अरे परोजी जिस समय ए सब बातें अंड्रि आस पर प्रगट हो जायंगी तो―"।
वह अपने मन में इतना ही विचार करने पाया था कि अकस्मात् मिमो, फलीरी, और काण्टे राइनो, परोजी के अष्ट- प्रहरी सहचर आन पहुँचे। ए लोग भी उसके समान वेनिस के प्रथम श्रेणीके उच्चकुलजात, अकर्म्मा, व्यर्थव्ययी और विषयी थे। इन लोगों को वेनिस के सम्पूर्ण अत्यन्त ब्याज लेने वाले महाजन भली भांति जानते थे, जितना कि इनका ब्यवसाय था