पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७
अष्टम परिच्छेद
 

उससे अधिक ए ऋणी थे। परोजी के आयतन में पांव रखते ही मिमो (जिसकी मुखाकृति से विषयी होने का चिह्न-जिस में उसने अब तक अपना जीवन व्यतीत किया था-प्रगट था) बोला "क्यों परोजी क्या बात है, मुझे आश्चर्य्य है, परमेश्वर के लिये सच बताओ कि क्या यह समाचार सत्य है, कि तुमने माटियो को महाराज की भ्रातृजा के विनाश के लिये तानात किया था?"॥

"ऐं मैंने?" यह कह कर परोजीने तत्काल उसकी ओर पीठ फेर ली इसलिये कि वे लोग उसके मुखको जिस पर उस समय इस बात के सुनतेही मलीनता सी छा गई थी न देखें, "भला तुमारे हृदय में यह बात क्यों कर आई? वस जान पड़ा कि तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है।

मिमो―"जीवन की शपथ, जो कुछ मैंने सुना उसे कहता हूँ, चाहो फलीरी से पूछ देखो वह कुछ अधिक वर्णन कर सकेंगे"॥

फलीरी―"ईश्वर की शपथ करके कहता हूँ कि यह बात सत्य है कि लोमेलाइनो ने महाराज को पूर्ण विश्वास दिलाया है कि सिवाय तुम्हारे दूसरे ने माटियो को रोजाविलाके घात के लिये नहीं भेजा"।

परोजी―"और मैं फिर भी तुमसे कहता हूँ कि लोमेलाइनो सर्वथा असत्य कथन करता है"॥

कान्टेराइनो―"जो हो, पर तुम अपनी ओर से सावधान रहो क्योंकि अंड्रियास बड़ा बेढब मनुष्य है"।

फलीरी―"बेढब? मैं तुमसे कहता हूँ कि उस के समान संसार में दूसरा उल्लूका पट्ठा नहीं, बीरता तो भला उसमें कुछ है भी परन्तु बुद्धि तो नाम मात्र को नहीं है"।

कान्टेराइनों―"और मैं कहता हूँ कि अंड्रियास सिंह