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पृष्ठ:वेनिस का बाँका.djvu/७

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लिए असम्भव ही होता। श्रीयुत बा० ब्रजरत्न दासजी बी. ए.,बा. रामचन्द्रजी वर्मा बा० मकुन्ददासजी गुप्त को भी धन्यवाद देना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ, क्योंकि इन महानुभावों से भी मुझे इसके और प्रकाशन में कई प्रकार की सहायता मिली है।

अन्त में मैं इस पुस्तक की भाषा के सम्बन्ध में दो एक बातें निवेदन कर देना चाहता हूँ पहले संस्करण में इस पुस्तक की भाषा बहुत अधिक क्लिष्ट था जो इस संस्करण में कुछ सरल कर दी गई है। दोनों संस्करणों को सामने रखने से इस बात का पता लगता है कि किसी समय लेखकों की प्रवृत्ति कितनी अधिक क्लिष्ट और कठिन भाषा लिखने को ओर थी। परन्तु ज्यों ज्यों समय का प्रभाव पड़ता गया, त्यों त्यों लोग अपेक्षाकृत सरल भाषा लिखने लगे। यदि एक ओर इस पुस्तक का पहला संस्करण रखा जाय और दूसरी ओर 'अधखिला फूल' या 'ठेठ हिन्दी का ठाठ' रखा जाय तो अनजान आदमी कभी सहसा इस बात का विश्वास हो न कर सकेगा कि ये सब कृतियाँ एक ही सिद्धहस्त सुलेखक की हैं। यही है समय और प्रवृत्ति का प्रभाव।

अन्त में मैं हिन्दी के अन्यान्य बड़े बड़े लेखकों से भी यह निवेदन कर देना चाहता हूँ कि जिस प्रकार पूज्य हरिऔध जी ने मुझपर यह कृपा की है, उसी प्रकार वे भी मेरे पू० पिताजी के नाते मुझ पर अनुग्रह को दृष्टि रखा करें और मुझे अपना वात्सल्य-भाजन बनाए रहे।

काशी
रामनवमी
सं०१९८५
विनीत--
रामचन्द्र पाठक