बल से वेनिस के राज्य की नीव को इतना दृढ़ और पुष्ट कर डाला कि उसका उखाड़ना टेढ़ी खीर थी। जिनकी संगत में रहने से मनुष्य अपने को देवता समझने लगता था और जिनको यह बात हृदय से स्वीकार थी कि फ्लोडोआर्डो किसी समय में अच्छा नाम प्राप्त करे। उन्होंने तत्काल समझ लिया कि यद्यपि फ्लोडोआर्डो प्रगट में प्रसन्न ज्ञात होता है पर वास्तव में उसके हृदय को किसी बातका संताप है और उसका आनन्द बनावटी है। यह दशा देखकर लोमेलाइनों ने जो उससे पिता की भाँति प्रीति करता था, और नृपतिने जो उसको हृदय से चाहते थे, बहुत प्रयत्न किया कि उसके संताप का कारण जानें, और उसका मन बहलाये, परन्तु सकल प्रयत्न निष्फल हुये। फ्लोडोआर्डो प्रत्येक समय मलीन और मौन रहता था। यदि हमारे पाठकों को यह चिन्ता हो कि इस समय रोजाविला की कैसी दशा थी तो उनको समझ लेना चाहिये कि यह बात कथमपि संभव नहीं कि प्रेमी संतापित हो और प्रेयसी पर उसका प्रभाव न पड़े।
रोजाबिला प्रतिदिन कुम्हलाती और निर्बल होती जाती थी, उसके नेत्रों में प्रायः आँसू डबडबा आते थे, और आनन का वर्ण क्रमशः पीत पड़ता जाता था। यहाँ तक कि महाराज को जो उस पर प्राण न्योछावर किये देते थे उसके स्वास्थ्य में विघ्न पड़ने की आशंका हुई। उनका यह अनुमान बहुत ठीक उतरा, क्योंकि कतिपय दिवस में ही रोजाबिला सचमुच रुज- ग्रस्त हुई और उसे एक ऐसे कठोर ज्वर ने आ दबाया कि जिसकी औषध करने में वेनिस के बड़े बड़े वैद्यों की बुद्धि व्यस्त थी।
जिस समय कि भूमिनाथ अंड्रियास और उनके मन्त्रदाता रोजाविला के रुजग्रस्त होने की आपत्ति में पतित थे एक दिन